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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

न करके स्वराज्य प्राप्त करें। मुझे तो ऐसा लगता है कि श्री एन्ड्रयूज ऐसा कहकर बहुत ज्यादा आगे बढ़ रहे हैं। मैं तो इसके लिए तैयार हूँ कि अंग्रेज हमारे नौकर या देशवासी बनकर रहें। मुझे किसी भी धर्म, जाति या मत-मतान्तरके किसी भी मनुष्यके साथ, यदि वह भारतीयोंके प्रति सच्ची भावना रखता है, सहयोग करनेमें कोई आपत्ति नहीं है। मेरा आन्दोलन असहयोगका आन्दोलन है। मैं चाहता हूँ कि समस्त भारतसे यूनियन जैक हटा दिया जाये। जबतक यह सम्भव न हो तबतक में चाहता हूँ कि वह विभिन्न इमारतोंपरसे जरूर हटा लिया जाये और जिन इमारतोंपर यह फहराता रहे उनका बहिष्कार किया जाये। मेरी सलाह है कि लोग सरकारी समारोहोंका बहिष्कार करें। सरकारी संस्थाएँ मुझे जलते हुए मकानोंकी तरह लगती हैं, छात्र उनसे अलग रहें। भारतीय सब चीजोंका एकाएक बहिष्कार नहीं कर सकते, क्योंकि वे दीर्घकालसे गुलामीके बन्धनोंमें रह रहे हैं। हम जो अन्न खाते हैं उसका भी सरकारसे कुछ सम्बन्ध है, क्योंकि वह उन जमीनोंमें पैदा किया जाता है जिनकी मालिक सरकार है। लेकिन लोगोंको जानबूझकर सरकारसे सहयोग न करना चाहिए। हम धीरे-धीरे चीजसे मुक्त हो सकते हैं। गांधीजी बोल ही रहे थे कि कुछ और लोग जो बाहर खड़े थे, धक्कामुक्की करके भीतर आने लगे। गांधीजीने तुरन्त कहा कि समय बहुत कीमती है। मेरी समझमें नहीं आता कि हमारे युवक जो इतने न्यायप्रिय और सच्ची भावनावाले हैं, जो अपने जीवनको आरम्भ ही कर रहे हैं, समयकी पाबंदीकी इतनी उपेक्षा कैसे कर सकते हैं। मैं आपको बताता हूँ कि स्व० गोखले[१] समयको कितना मूल्यवान मानते थे। जब उन्होंने भारत सेवक समाजकी स्थापना की तब वे अपने भाषणसे पूर्व सभाभवनके द्वार बन्द करवा देते थे। घोषित समयके ठीक दो मिनट बाद द्वार बन्द कर दिया जाता। तब वे सर टाटा[२] तक को भी जो उनके मुख्य सहायक थे, भवनमें नहीं आने देते थे। अपने विषयको पुनः आरम्भ करते हुए गांधीजीने कहा: किसी व्यक्तिने मुझसे कहा है कि श्री हसन इमाम [३] मेरे आन्दोलनका एक सप्ताहके अन्दर ही खात्मा कर देनेपर आमादा हैं। लेकिन जब में उनसे मिला तब उन्होंने मुझसे कहा कि यह सच नहीं है। इतना ही नहीं, जहाँतक असहयोगका सम्बन्ध है, वे मेरे साथ हैं और मुझे हर तरहकी सहायता देनेके लिए तैयार हैं। किन्तु उनको समझमें यह नहीं आता कि अहिंसाका मतलब क्या है। यदि इस

  1. गोपाल कृष्ण गोखले (१८६६-१९१५ ); शिक्षा शास्त्री और राजनीतिज्ञ; भारत सेवक समाज (सवॅन्टस ऑफ इंडिया सोसाइटी) के संस्थापक।
  2. सर रतनजी जमशेदजी टाटा ( १८७१-१९१८); पारसी उद्योगपति और दानी।
  3. हसन इमाम ( १८७१-१९३३); कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश; १९१६ में त्यागपत्र देनेके बाद पटना उच्च न्यायालय में वकालत शुरू की। सितम्बर १९१८ में बम्बईके विशेष कांग्रेस अधिवेशनके अध्यक्ष बनाये गये; ये सेवर्समें टर्कीसे हुई सन्धिमें परिवर्तन करानेके लिए मुसलमानोंका शिष्टमण्डल लेकर इंग्लैंड गये थे।