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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

क्या करेंगे? आप मौलवी हक[१] और राजेन्द्र बाबूसे शिक्षा लें और स्वतन्त्र होकर अपने पैरोंपर खड़े हों। यह सोचना गुलामीका सूचक है कि सनदोंसे जीविका चलती है। भोजन सनवें नहीं, ईश्वर देता है। आप यह न सोचें कि आपकी माताओं और पत्नियोंकी क्या दशा होगी, आप उनका पालन-पोषण सरकारी नौकरीके द्वारा न करके कुलीगिरीसे करें। यदि आपमें इतना साहस हो तभी आप असहयोग करें, अन्यथा नहीं। मुझे विश्वास है कि यदि सभी लोग असहयोग करें तो हमें एक सालमें ही स्वराज्य मिल जायेगा। आप इसके लिए दूसरोंकी राह न देखें। जब किसीको हैजा होता है तो वह यह नहीं सोचता कि जब दूसरे लोग दवा ले लेंगे, मैं भी दवा लूँगा। इसमें कोई औचित्य नहीं है कि आप स्वयं स्वतन्त्र होनेके लिए दूसरोंके स्वतन्त्र होनेकी राह देखें। पहिले आप स्वयं स्वतन्त्र हों और तब गाँवोंमें जाएँ और उनके चलाये हुए छोटे-छोटे स्कूलोंमें वहाँके लोगोंको स्वतन्त्रताकी शिक्षा दें। मेरा अभिप्राय यह नहीं है कि आप अपने माता-पिताओंका अनादर करें। आपकी अन्तरात्मा आदेश दे तो आप वैसा भी कर सकते हैं; लेकिन मेरे कहनेसे तो वैसा न करें। मैं स्वयं अपने माता-पिताका बहुत आदर करता था, इसलिए मैं तो आपको अपने माता-पिता की आज्ञाका पालन करना ही सिखा सकता हूँ, उनके प्रति अशिष्ट होना नहीं। छात्र शान्त चित्तसे निर्णय करने के बाद अपने अभिभावकोंको अत्यन्त आदरसे अपनी बात समझायें। मैंने अभिभावकोंसे भी अनेक बार कहा है कि वे अपने लड़कोंको स्कूलों और कालेजोंसे निकाल लें। अबतक इसपर किसीने भी आपत्ति नहीं की है। आप यह पूछ सकते हैं कि यह हमारी आत्माकी आवाज है, इसे हम कैसे जानें। मेरा कहना है कि यदि आप ईश्वरके प्रति सच्चे हैं और यमों और नियमोंका पालन करते हैं तो अभ्यन्तरमें उठनेवाली परमात्माकी वाणीको आप पहचान सकते हैं।

आपको उन लोगोंकी बात भी, जिनकी राय आपसे नहीं मिलती, धैर्यसे सुननी चाहिए। अब मैं आपको यह बताता हूँ कि छात्रोंको क्या करना है और कैसे करना है। आपको अपने ऊपर निर्भर रहना है, मेरे ऊपर नहीं। आप आज छात्र हैं, आपको ही कल नेता बनना है। आपको कोई निर्णय उतावलीमें नहीं करना चाहिए। यदि आपको स्कूलोंमें फिर जाना है तो इससे अच्छा यही है कि आप स्कूल छोड़ें ही नहीं। आन्दोलनमें एक बार शामिल हो जाने के बाद उससे विमुख होने के बजाय गंगामें डूब मरना ज्यादा अच्छा है।

[अंग्रेजीसे]
सर्चलाइट, ८-१२-१९२०
 
  1. मजहरूल हक (१८६६-१९३०); बिहारके प्रमुख वकील और सार्वजनिक कार्यकर्त्ता; इन्होंने मॉर्ले-मिन्टो सुधारोंके अन्तर्गत मुसलमानोंको पृथक निर्वाचन देनेका विरोध किया था। चम्पारन सत्याग्रहमें गांधीजीके मददगार। १९२०-२१ के असहयोग आन्दोलनमें गांधीजीके समर्थक।