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४७. भाषण: महिलाओंकी सभा, पटनामें[१]

३ दिसम्बर, १९२०

इसके बाद महात्माजीने बीमार होनेके कारण कुर्सीपर बैठकर बोलना शुरू किया। वे हिन्दीमें बोले।[२] उन्होंने पहले बैठे-बैठे भाषण देनेके लिए महिलाओंसे क्षमा माँगी और फिर कहा: मैं आपसे चार चीजोंकी भिक्षा माँगता हूँ। मैं और मौलाना शौकत अली, जिन्हें मैं अपना सगा भाई मानता हूँ, आपके सामने अपनी मातृभूमिके निमित्त कुछ-न-कुछ सेवा माँगनके लिए आये हैं। मैं जानता हूँ कि पुरुषोंकी अपेक्षा स्त्रियाँ अधिक विनम्र और दयालु होती हैं। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि मुझे अपनी माताओं और बहिनोंसे निराश न होना पड़ेगा।

मैं सबसे पहले हिन्दू और मुसलमान महिलाओंसे यह प्रार्थना करता हूँ कि परस्पर वे एक दूसरेको अपना दुश्मन न मानें और अपने बच्चोंको भी बचपनसे ऐसी ही शिक्षा दें, जिससे वे भी कभी एक दूसरेको दुश्मन न समझें। इससे मेरा मतलब यह नहीं है कि दोनों बिलकुल एक हो जायें या हिन्दू लोग वेदों और शास्त्रोंको पढ़ना और उनमें विश्वास करना छोड़कर ‘कुरान’ पढ़ने और उसमें विश्वास करने लगें; इसका मतलब यह भी नहीं है कि मुसलमान ‘कुरान’ का अध्ययन छोड़कर हिन्दुओंके ‘वेद’ और शास्त्र पढ़ने लगें। सभी लोग अपने-अपने धर्मोमें दृढ़ रहें। जैसे भाई और बहिनमें विवाह नहीं होता, किन्तु फिर भी वे एक दूसरेसे प्रेम कर सकते हैं, इसी तरह हिन्दू और मुसलमान भी एक-दूसरेसे प्रेम करें और एक-दूसरेका आदर करें।

मेरी दूसरी भिक्षा यह है कि हरएक स्त्री चरखा चलाये और सूत काते। जो बहिन अपने सूतको बेचना चाहें वे बेच भी सकती हैं। किन्तु जो उसे बेचना नहीं चाहतीं वे उसे दूसरोंको दान कर दें। दानोंमें वस्त्र-दान सर्वोत्तम है। जबसे भारतमें चरखा चलाना छोड़ा गया है, तबसे भारत और भी गरीब हो गया है। पहले जिन स्त्रियोंका निर्वाह चरखेसे होता था, वे अब गुलामीकी हालतमें बहुत दुःखी जीवन बिता रही हैं। वे अब ओवरसीयरोंकी गालियाँ सुनती तथा ईंटोंकी रोड़ी और पत्थरकी गिट्टियाँ तोड़ती हैं। मुझे चम्पारनमें ऐसी बहुत-सी स्त्रियाँ मिलों जिनके पास अपने शरीरको ढकनेके लिए केवल एक धोती ही थी और इसलिए वे जब चाहें तभी गंगामें नहानेके लिए भी नहीं जा सकती थीं। जिस जमानेमें वे अपने हाथके कते सूतसे कपड़ा बुनवा लिया करती थीं, उस जमानेका स्वतंत्र जीवन अब नहीं रहा।

 
  1. इस सभार्मे मौलाना अबुल कलाम आजाद और शौकत अली भी मौजूद थे।
  2. मूल हिन्दी भाषण उपलब्ध नहीं हैं।