पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 19.pdf/९८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं आपसे तीसरी भिक्षा यह माँगता हूँ कि आप अपने पुत्रों और भाइयोंको उन स्कूलोंमें न पढ़ने दें जो सरकारी हैं या जिन्हें वह सहायता देती है, क्योंकि इसका एकमात्र अर्थ अपने आपको पराधीनता और गुलामीकी जंजीरोंमें बाँधना ही है। उन्हें इन संस्थाओंमें कोई सामाजिक या धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाती। वहाँ वे केवल शराब पीना, थियेटर जाना और आवारागर्दीकी जिन्दगी बिताना ही सीखते हैं। उन्होंने आगे कहा: जो सरकार इतनी अन्यायी है, जिसने हमारे मुसलमान भाइयोंके साथ इतनी दगा की है, जिसने पंजाबमें हमारी माताओं और बहनोंसे इतनी निर्दयताका व्यवहार किया है, उससे सहयोग करना सम्भव ही नहीं है। ऐसे शासनमें रहना हम कभी पसन्द ही कैसे कर सकते हैं? शैतान और खुदाके बीच कोई सहयोग नहीं हो सकता। इसी तरह हम न तो सरकारको सहायता कर सकते हैं और न उससे सहायता ले सकते हैं; यह ज राज जैसा ही बुरा है। मैं तो रामराज्य स्थापित करना चाहता हूँ। दूसरे शब्दोंमें मैं पूर्ण स्वराज्य चाहता हूँ। और वह असहयोगके बिना प्राप्त नहीं किया जा सकता।

मैं चौथी भिक्षा धनकी माँगता हूँ। भारतको धनको बहुत जरूरत है। यहाँ तीन करोड़ लोग ऐसे हैं जिन्हें मुश्किलसे दिनमें एक बार खाना मिल पाता है। उनके पास इतना रुपया नहीं है कि वे चरखा या रुई खरीद सकें । उनको ये दोनों चीजें देनी होंगी जिससे वे सूत कात सकें और देशमें एक बार फिर स्वदेशी कपड़ेका प्रचार कर सकें। फिर लड़कोंके लिए राष्ट्रीय विश्वविद्यालय भी खोले जाने चाहिए। इसके लिए भी धनकी बहुत सख्त जरूरत है। उन्होंने आगे कहा: मुझे यह देखकर दुःख होता है कि सभामें बहुत-सी स्त्रियाँ इतने सारे कीमती जेवर पहन पहन कर आई हैं। इसी देशमें ऐसे अनेक लोग हैं जो दरअसल भूखों मर रहे हैं, जबकि कुछके पास जेवर आदि बनवाने के लिए बहुत-सा रुपया फालतू पड़ा रहता है। मेरी प्रार्थना है। कि आप ज्यादा से ज्यादा जितना पैसा दे सकें दें और जेवर देना चाहें तो जेवर भी दें।[१] किन्तु आपको याद रखना चाहिए कि आप आभूषणोंको देनेके बाद उनके बदले दूसरे आभूषण तबतक न बनवायें जबतक भारतको पूरा स्वराज्य न मिल जाये।

[अंग्रेजीसे]
सर्चलाइट, ८-१२-१९२०
 
  1. इस अपीलके उत्तर में वहां मौजूद कितनी ही स्त्रियोंने अपने जेवर उतार कर दे दिये थे।