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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

साथ अध्ययन करना चाहिए। और जबतक अधिनियम रद न हो जाये या सरकारी सहायतासे नेटालको मजदूर भेजना स्थगित न कर दिया जाये, तबतक हमें शांतिसे नहीं बैठना चाहिए। मद्रासकी सभाने एक प्रस्ताव स्वीकार किया है। उसमें अनुरोध किया गया है कि अगर उपर्युक्त अधिनियमको रद न कराया जा सके तो इस प्रकार मजदूर भेजना स्थगित कर दिया जाये।

मो॰ क॰ गांधी

कलकत्ता, १-११-१८९६
[अंग्रेजीसे]

द ग्रीवैसेज ऑफ द ब्रिटिश इंडियन्स इन साउथ आफ्रिका : एन अपील टु द इंडियन पब्लिक

 

१४. पत्र : फर्दुनजी सोराबजी तलेयारखाँको

ग्रेट ईस्टर्न होटल
कलकत्ता
५ नवम्बर, १८९६

प्रिय श्री तलेयारखाँ,

आपका पिछला पत्र मुझे यहाँ भेज दिया गया था। मैंने आपको मद्राससे पत्र[१] लिखकर कलकत्ताके पतेकी सूचना दे दी थी। यहाँ पहुँचनेपर भी लिखा[२] था। आशा है, आपको दोनों पत्र मिल गये होंगे।

यह बिलकुल सही है कि नेटाल जाने में आपको आर्थिक त्याग करना पड़ेगा। मगर मुझे निश्चय है कि कार्य इस त्यागके योग्य है।

मैं 'कूरलैंड' जहाज पकड़ने की कोशिश करूँगा। वह इस माहकी २० तारीखके पहले रवाना होगा, ऐसी अपेक्षा है। काश, आप भी उस समयतक तैयार हो सकें।

क्या आप नेटालके नये मताधिकार-कानूनपर विचार करेंगे, और अगर बम्बई के प्रमुख वकील अपनी राय मुफ्त दें तो ले लेंगे? मताधिकार-प्रार्थनापत्रमें आपको विधेयकका पाठ मिल जायेगा। पुस्तिकामें उसपर एक कानूनी राय भी है। यहाँ प्राप्त की हुई कोई भी राय नेटालमें हमारे बहुत काम आयेगी।

मेरा खयाल है कि यहाँ सभा इस शुक्रवारसे अगले शुक्रवार के बीच सप्ताहभरमें होगी। इसका आखिरी निर्णय कल किया जायेगा।

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

मूल अंग्रेजी पत्रसे; सौजन्य : रुस्तमजी फर्दुनजी सोराबजी तलेयारखाँ

  1. देखिए पृ॰ ६९–७१।
  2. यह पत्र उपलब्ध नहीं है।