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भेंट : 'स्टेट्समैन' के प्रतिनिधिको

बात तो यह है कि १८९३ में जब यहाँ नेटालसे एक आयोग भारत आया तो केवल उसकी एकतरफा बात सुनकर भारत सरकारने मजदूरोंको जबरदस्ती पुनः शर्तमें बाँधने की बातको अपनी मंजूरी दे दी। परन्तु इसके विरुद्ध हम फिर भारत-सरकारको और इंग्लैंडकी सरकारको भी प्रार्थनापत्र भेज रहे हैं।

[प्र॰] हमने बहुत सुना है कि नेटालके गोरे निवासी वहाँके भारतीयोंको रोजबरोज तंग किया करते हैं। यह क्या बात है?

[गां॰] बेशक! और इस व्यवस्थित अत्याचारमें खुले अथवा छिपे तौरपर कानून उनकी मदद करता है। कानून कहता है कि भारतीय पैदल-पटरीपर नहीं चल सकते, उन्हें रास्तेके बीचसे चलना चाहिए। उन्हें रेलके पहले और दूसरे दर्जेमें सफर नहीं करना चाहिए। उन्हें रातको नौ बजे के बाद बगैर परवाने के अपने मकानसे बाहर नहीं निकलना चाहिए। अगर वे कहीं अपने जानवरोंको ले जायें तो उसका परवाना लें। इसी तरह की और भी बातें हैं। इन विशेष कानूनोंमें कितना अत्याचार भरा है, इसकी जरा कल्पना कीजिए। इनपर अमल करते हुए अत्यन्त प्रतिष्ठित ऐसे-ऐसे भारतीयोंका रोजमर्रा अपमान किया जाता है, जो आपके साथ विधानसभाओंमें बैठने की योग्यता रखते हैं; उनपर हमला किया जाता है और पुलिसके साथ उन्हें सड़कों पर घुमाया जाता है। इन कानूनी बन्दिशोंके अलावा सामाजिक बाधा-निषेध अलग है। ट्रामगाड़ियों, सार्वजनिक होटलों और सार्वजनिक स्नानघरोंमें किसी भारतीयको नहीं आने दिया जाता।

[प्र॰] अच्छा, मि॰ गांधी, मान लीजिए कि कानूनी बन्दिशें हटवाने में आप सफल हो गये। फिर भी, सामाजिक बाधा-निषेधोंका आप क्या करेंगे? विधानसभाम आप अपने किसी आदमीको नहीं भेज सकते, इसकी अपेक्षा क्या वे निर्योग्यताएँ आपको सौ-गुनी अधिक नहीं अखरेंगी, नहीं चुभेंगी, और गुस्सा नहीं दिलायेंगी?

गां॰] हम आशा करते हैं कि जब कानूनी बन्दिशें हट जायेंगी तब धीरे-धीरे सामाजिक बाधा-निषेध भी दूर हो जायेंगे।

[अंग्रेजीसे]
स्टेट्समैन,.१२-११-१८९६