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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

उनके द्वारा दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंकी दुर्दशाकी तरफ उनका ध्यान दिलायें। ऐसी सभाएँ सारे बम्बई और मद्रास-प्रान्तमें तथा कलकत्तामें[१] हुई है।

भारत-सरकारको तरफसे इस विषयमें आपको कोई उत्साहवर्धक जवाब मिला है ?

नहीं, उसका उत्तर मिलने के पहले ही मुझे यहाँ चले आना पड़ा।

श्री गांधीने आगे कहा

कहा गया है कि मैं नेटालके उपनिवेशियोंके आचरणपर लांछन लगाने के लिए भारत गया था। इस बात से मैं दृढ़तापूर्वक इनकार करता हूँ। शायद लोगोंको याद होगा कि दो वर्ष पहले मैंने नेटालकी संसदको एक "खुली चिट्ठी[२] लिखी थी। और उसमें मैने बताया था कि यहाँ भारतीयोंके साथ कैसा सलूक हो रहा है। भारतकी जनताके सामने मैंने ठीक वही सारी बातें रखीं।

सच तो यह है कि अपनी पुस्तिकामें मैने उस 'खुली चिट्ठी 'का ही एक हिस्सा शब्दशः उद्धत किया है।[३] भारतीयोंके साथ उस समय जैसा व्यवहार हो रहा था उसके बारे में मेरे विचार उस 'खुली चिट्ठी' में दिये गये हैं। और जब वह प्रकाशित हुई थी तब उसके उस हिस्सेपर किसीने कोई आपत्ति नहीं की थी। तब किसीने यह नहीं कहा कि मैं उपनिवेशियोंके आचरणपर लांछन लगा रहा है। परन्तु अब वही बात जब भारतमें कही जाती है तब यह शोर होता है। मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि इससे उपनिवेशियोंके आचरणपर लांछन कैसे लगता है। उस 'खुली चिट्ठी' पर अखबारोंमें चर्चा भी हुई, किन्तु किसीने मेरे कथनका प्रतिवाद नहीं किया। बल्कि सभी अखबारोंने लगभग एकस्वरसे यही कहा कि मेरा वर्णन अत्यन्त निष्पक्ष है। ऐसी सूरतमें मुझे लगा कि मैं अगर उस अंशको उद्धृत करता हूँ तो इसमें कुछ भी अनुचित नहीं है। मुझे पता है कि रायटरने उस पुस्तिकाका सार[४] तार द्वारा इंग्लैंड भेजा था। यह सार मेरी उस 'खुली चिट्ठी' से मेल नहीं खाता था। और ज्यों ही आपको वह पुस्तिका मिली त्यों ही डर्बनके दोनों समाचार-पत्रोंने लिखा कि रायटरका सन्देश बहुत अतिरंजित है।[५] रायटरने क्या कहा है और उसका क्या अभिप्राय है, इसके लिए मैं जिम्मेवार नहीं हो सकता। मेरा तो खयाल है कि प्रदर्शनकारी दलके लोगोंने अभीतक न तो मेरी बह 'खुली चिट्ठी' पढ़ी है और न वह पुस्तिका, ही। उन्होंने तो यह समझ लिया है कि रायटरका भेजा तार पुस्तिकाका सही संक्षेप

  1. कलकत्तेके जिस आमसभा में गांधी जी भाषण करने वाले थे (देखिए पृ॰ ९८) वह रद करदी गई थी, क्योंकि गांधी जी को अत्यंत शीघ्रता के साथ दक्षिण अफ्रीका के लिए रवाना होना पड़ा था (देखिए पृ॰ १०२)। शायद गांधी जी ने ब्रिटिश इंडिया एसोसिएशन कमेटीकी सभा का संकेत किया गया है। जिसमें उन्होंने भाषण किया था और जिसमें दक्षिण अफ्रीकावासी भारतीयोंकी स्थिति के बारे में एक भारत-मन्त्रीको प्रर्थनापत्र भेजने का निश्चय किया।
  2. देखिए खण्ड १, पृ॰ १७५–९५।
  3. देखिए पृ॰ ३–४।
  4. देखिए "प्रर्थनापत्र : उपनिवेश मंत्री" को, १५–३–१८९७‌।
  5. देखिए "प्रर्थनापत्र : उपनिवेश मंत्री" को, १५–३–१८९७।