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पत्र : सर विलियम डब्ल्यू॰ हटरको

अधिकारोंके अलावा और कोई अधिकार नहीं है।" उसमें उपर्युक्त दूसरे प्रस्तावमें सुझाई गई कार्रवाईकी निन्दा भी की गई थी। इसपर नगर-भवनमें दूसरी सभा की गई। श्री वाइलीने उसमें यह प्रस्ताव किया कि संगरोधकी अवधि बढ़ानेके लिए संसदका एक विशेष अधिवेशन किया जाये। यह प्रस्ताव स्वीकृत हो गया। श्री वाइलीने जो भाषण दिया, उसके कुछ अर्थगर्भित अंश ये हैं :

कमेटीने कहा, अगर सरकारने कुछ नहीं किया तो डर्बनको स्वयं करना होगा और दल-बलके साथ बन्दरगाहपर जाकर देखना होगा कि क्या-कुछ किया जा सकता है। और, सबसे ऊपर उन्होंने कहा : "हम मानते हैं कि आपको इस उपनिवेशकी सरकार और वैध सत्ताके प्रतिनिधिको हैसियतसे हमें रोकने के लिए सैन्यबल लाना होगा।" महान्यायवादी और रक्षामंत्री श्री एस्कम्बने कहा : "हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे। हम आपके साथ हैं, और हम आपको रोकने के लिए ऐसा कुछ भी करनेवाले नहीं है। परन्तु अगर आप हमें ऐसी स्थितिमें डाल देंगे तो शायद हमें उपनिवेशके गवर्नरके पास जाकर कह देना होगा कि अब हम शासन चलाने में असमर्थ हैं, इसलिए आप उपनिवेशकी बागडोर खुद संभालिए। आपको कुछ दूसरे आदमी खोजने होंगे?"

दूसरा प्रस्ताव यह था कि "भारतीयोंके आनेपर हम प्रदर्शन करते हुए बन्दरगाहपर जायेंगे; परन्तु हरएक व्यक्ति अपने नेताओंकी आज्ञा मानने की प्रतिज्ञा करता है।" भाषणकर्ताओंने श्रोताओंको मेरे खिलाफ खास तौरसे भड़काया। लोगोंके हस्ताक्षरोंके लिए एक पर्चा निकाला गया था। उसका शीर्षक यह था : "धन्धा या पेशा-सहित सूची—उन सदस्योंके नामोंकी जो बन्दरगाहपर जाने और, जरूरत हो तो, बलपूर्वक एशियाइयोंके उतरने का विरोध करने और नेता लोग जो भी आदेश दें उनका पालन करने के लिए राजी है।" आन्दोलनका दूसरा कदम यह था कि प्रदर्शन-समितिने 'कूरलैंड' के कप्तानको अन्तिम चेतावनी भेजी कि यात्री उपनिवेशके खर्चपर भारत लौट जायें, और अगर वे नहीं मानेंगे तो डर्बनके हजारों लोग उनके उतरने का प्रतिरोध करेंगे। इसकी लगभग उपेक्षा कर दी गई।

जब आन्दोलन इस तरह बढ़ रहा था उस समय एजेंटोंने सरकारके साथ लिखापढ़ीकी और यात्रियोंके संरक्षणकी मांग की। इसका कोई उत्तर १३ तारीख तक, जब कि जहाज बन्दरगाहपर लाया गया, नहीं दिया गया। जिस तारकी एक नकल इसके साथ नत्थी है, उसमें बहुत-कुछ जोड़ने को नहीं रह जाता। जहाँतक मुझपर हमलेकी बात है, उसका कारण मेरे बारेमें अखबारोंमें प्रकाशित गलत विवरण देना था। प्रत्यक्ष आक्रमण गैर-जिम्मेदार लोगोंका काम था, और सिर्फ उसीको देखा जाये तो उसका बिलकुल खयाल करनेकी जरूरत नहीं है। बेशक, मैं अपनी हत्यासे बाल-बाल बच गया। अखबार इस विषयमें एकमत हैं कि मैंने ऐसा कोई काम नहीं किया जो मेरी स्थितिमें होनेपर कोई दूसरा व्यक्ति न करता। मैं यह भी कह दूं कि हमलेके बाद सरकारी कर्मचारियोंने मेरे साथ बहुत सहृदयताका व्यवहार किया और मुझे संरक्षण प्रदान किया।