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प्रर्थनापत्र उपनिवेश-मंत्रीको

एक समाचार-पत्रमें प्रकाशित विवरणके आधारपर, स्वास्थ्य-अधिकारीको लिखकर पूछा कि जहाजोंको संगरोधनमें क्यों रखा जा रहा है? (परिशिष्ट ग)। इसका उन्हें कोई उत्तर नहीं मिला। उसी महीनेकी २१ तारीखको जहाज-मालिकोंके सॉलिसिटर गुडरिक, लॉटन ऐंड कुकने नेटालके माननीय उपनिवेश-मंत्रीको इस सम्बन्धमें एक तार दिया और पूछा कि क्या माननीय गवर्नर साहब मालिकोंके शिष्टमंडलसे मिलने की कृपा करेंगे? (परिशिष्ट घ)। उसका उत्तर मैरित्सबर्गसे २२ दिसम्बरको आया कि शिष्टमंडलकी कोई आवश्यकता नहीं है। इसके जो कारण बतलाये गये उनका उल्लेख परिशिष्ट ङ में किया गया है। परन्तु जब सॉलिसिटर तार भेज चुके तब उन्हें पता लगा कि गवर्नर साहब डर्बनमें ही हैं। इसपर उन्होंने उसी आशयका एक पत्र माननीय हैरी एस्कम्बकी सेवामें लिखा (परिशिष्ट च)। उसका उत्तर मिला कि इस मामलेमें मन्त्रियोंसे सलाह की जायेगी, परन्तु यदि शिष्टमंडल चाहे तो गवर्नर साहब उससे २३ दिसम्बरको मिल लेंगे (परिशिष्ट छ)। २२ तारीखको 'कूरलैंड' के मास्टरने संकेत द्वारा यह सन्देश भेजा : "हमारे दिन पूरे हो गये, क्या अब हम संगरोधनसे बाहर है? संगरोधन-अधिकारीसे पूछकर बतलाइए। हम सब अच्छे हैं। धन्यवाद" (परिशिष्ट क)। इसका संकेत द्वारा इस आशयका उत्तर दिया गया कि अभीतक संगरोधनकी अवधिका निर्णय नहीं हुआ। 'नादरी' से भी इसी आशयका सन्देश आया और उसका भी उत्तर इसी आशयका दिया गया। इस प्रसंगमें प्रार्थी पृथक् रूपसे यह बतला देना चाहते हैं कि जहाजोंके मालिकों और एजेंटोंको यह सूचना बिलकुल नहीं दी गई थी कि जहाजोंके अफसरों और तटके अधिकारियोंमें क्या बातचीत चल रही है। २३ दिसम्बरको 'नादरी' से मिले एक संकेत-सन्देशके उत्तरमें बतलाया गया : "संगरोधनअधिकारीको अबतक भी कोई हिदायत नहीं मिली" (परिशिष्ट ख)। सॉलिसिटरोंके पत्र (परिशिष्ट त) से इतना पता अवश्य चलता है कि स्वास्थ्य-अधिकारीने क्योंकि यह आज्ञा दी थी कि जहाजोंको बम्बईसे रवाना होने के पश्चात् २३ दिन बीत जाने तक संगरोधनमें रहना होगा, इसलिए उसे मुअत्तिल या बरखास्त कर दिया गया और उसके स्थानपर डॉ॰ बर्टवेलको नियुक्त कर दिया गया। २४ दिसम्बरको डॉ॰ बर्टवेल और समुद्री पुलिसके सुपरिटेंडेंट जहाजोंपर गये। उन्होंने मल्लाहों और यात्रियोंसे बातचीत की, जहाजोंको ओषधियों द्वारा शोधने व धुआँ लगाने की, और मैले कपड़ों, सभी पट्टियों, टोकरियों और बेकार चीजोंको छतकी भट्टीमें जला डालने की हिदायत दी, और 'कूरलैंड' तथा 'नादरी' को क्रमश: ११ और १२ दिन तक संगरोधनमें रहने की आज्ञा दे दी (परिशिष्ट क और ख)। उनकी हिदायतोंके अनुसार अधिकतर पुराने कपड़े और पट्टियाँ आदि जला डाली गईं और जहाजोंकी सफाई करके उन्हें धुआँ दे दिया गया। २८ दिसम्बरको एक ऐसा पुलिस अधिकारी जहाजोंपर गया जिसे कि उन्हें ओषधियों द्वारा शोधने की कार्रवाईका निरीक्षण करने की आज्ञा दी गई थी। २९ तारीखको 'कूरलैंड' से यह संकेत-सन्देश दिया गया : "शोधने और धुआँ देनेकी कार्रवाई ऐसी कर दी गई कि यहाँ मौजूद अधिकारीको उससे सन्तोष हो गया है।" इसी प्रकारका एक संकेत-सन्देश उसी दिन 'नादरी से भी भेजा गया। 'कूरलैंड' ने फिर सन्देश भेजा,