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प्रर्थनापत्र : उपनिवेश-मंत्रीको

विषयमें अपनी सम्मति देनेको कहा (परिशिष्ट त)। यात्रियोंके बिछौने और कपड़े जला डाले गये और यद्यपि इस बरबादीके बाद उन्हें १२ दिनतक जहाजोंपर ही रहना था फिर भी सरकारने—जहाजोंसे सन्देश भेजे जानेपर भी—कपड़े और बिछौने देनेका कोई प्रबन्ध नहीं किया। और यदि डर्बनके कुछ परोपकारी भारतीय[१] उदारता न दिखलाते तो यात्रियोंको इतने समयतक बिछौनों और काफी कपड़ोंके बिना ही रहना पड़ता। शायद इससे उनके स्वास्थ्यको भी भारी हानि पहुँच जाती। प्रार्थी, अधिकारियोंका उचित सम्मान करते हुए भी, यह कहे बिना नहीं रह सकते कि भारतीय समाजके प्रति उनकी इतनी उपेक्षावृत्ति थी कि उन्होंने, जहाजोंको पहुँचे दस दिन बीत जानेसे पहले, उनपर से डाकतक उठवाकर बँटवाने का प्रबन्ध नहीं किया। इससे भारतीय व्यापारियोंको भारी असविधा हई। इन शिकायतोंकी अधिक पृष्टि करने के लिए आपके प्रार्थी आपका ध्यान इस सचाईकी ओर खींचना चाहते हैं कि 'कूरलैंड' को यात्री उतारने की इजाजत मिल गई और वह घाटके पास आ गया तब भी उसे कई दिनतक घाटपर लगने का स्थान नहीं दिया गया। जो जहाज उसके बाद आये थे उनको स्थान दे दिया गया। इसका प्रमाण निम्न विवरण है :

'कूरलैंड' के कप्तानने हमारा ध्यान इस वस्तुस्थितिकी ओर खींचा है। कि यद्यपि उनका जहाज गत बुधवारसे बन्दरगाहके भीतर खड़ा है फिर भी उसे मुख्य गोदीपर जानेका स्थान अबतक नहीं मिल सका। पिछले दिनों कई जहाज यहाँ आये, और यद्यपि 'कूरलैंड' को उनसे पहले स्थान पानेका हक था, पीछे आनेवालों को तो घाटपर लगने की जगह मिल गई और 'कूरलैंड' धारामें ही खड़ा रह गया। 'कूरलैंड' को लगभग ९०० टन माल उतारना है और लगभग ४०० टन कोयलेको आवश्यकता है। ब्लफसे घाटतक सामान ढोनेका व्यय बहुत ज्यादा होगा।—'नेटाल एडवर्टाइज़र', १९ जनवरी, १८९७

प्रार्थी यह दिखलाने के लिए कि प्रदर्शनसे पहले और बादमें उसके विषयमें विभिन्न पत्रोंका मत क्या था, उनके उद्धरण देनेकी इजाजत चाहते हैं :

भारतीयोंके आगमनके सम्बन्धमें नेटालको वर्तमान कार्रवाई सन्तुलित नहीं है। भारतीयोंको यहाँ उतरने देने के विरुद्ध आन्दोलनने डर्बनमें सर्वथा उग्र रूप धारण कर लिया है। बाहरके संसारका ध्यान, इससे ठीक उलटे, इस यथार्थताकी ओर गये बिना नहीं रहेगा कि अबतक-डर्बन बन्दरगाह ही दक्षिण आफ्रिकामें भारतीय लोगोंके प्रवेशका प्रायः एकमात्र द्वार रहा है। यह कल्पना कोई कठिनाईसे ही कर सकता है कि जो देश इतने दीर्घ कालसे खुल्लमखुल्ला भारतीयोंको आनके लिए उत्साहित करता चला आ रहा है वह, सर्वथा अकस्मात्, डर्बनमें उतरने की प्रतीक्षा करते हुए दो जहाजोंके यात्रियोंपर उलट

  1. देखिए पृ॰ १५८।

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