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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

चाहिए कि वह पल-भर भी संकोचके बिना अपनेसे मिलनेवालों से कह दे कि कानूनमें रत्ती-भर भी दस्तन्दाजी नहीं होने दी जायेगी, और यदि आवश्यकता हो तो मंत्रीको साफ शब्दोंमें कह देना चाहिए कि कानूनको रक्षा सब तरह और सब उपलब्ध साधनोंसे की जायेगी। इसके विपरीत, श्री एस्कम्बके कहने का भाव यह था कि सरकार इस कानून-विरोधी कार्रवाईका विरोध करने के लिए कुछ नहीं करेगी। जो लोग खुल्लमखुल्ला भारतीय प्रवेशार्थियोंके लिए हिन्द महासागरको उपयुक्त स्थान बताते हैं उनके हाथों में खेल जानेसे पदारूढ़ सरकारके एक सदस्यकी शोचनीय निर्बलता प्रकट होती है।—'टाइम्स ऑफ नेटाल' जनवरी, १८९७।

ऊपरके उद्धरण अपना भाव आप ही बतला रहे हैं। प्रायः प्रत्येक समाचारपत्रने उक्त प्रदर्शनकी निन्दा की है। उन्होंने यह भी दिखलाया है कि सरकारने समितिकी कार्रवाईको बढ़ावा दिया था। प्रार्थी यहाँ यह भी जिक्र कर देना चाहते हैं कि इसके बाद प्रदर्शनके नेताओंने इस बातसे इनकार किया है कि सरकार और उनमें कोई "गठबन्धन" हो गया था। फिर भी यह एक सच्चाई है, और ऊपरके उद्धरणोंसे यह स्पष्ट है कि यदि सरकार, श्री एस्कम्ब और श्री वाइलीमें हुई बातचीतके सम्बन्धमें, श्री वाइलीके वक्तव्यका खंडन कर देती और सार्वजनिक घोषणा कर देती कि यात्रियोंको न केवल सरकारसे रक्षा पानेका अधिकार है, बल्कि आवश्यकता होनेपर उनकी रक्षाकी भी जायेगी, तो यह प्रदर्शन होने ही न पाता। अब तो स्वयं सरकारके ही मुखपत्रने कहा है कि जब आन्दोलन चल रहा था तब सरकार ही उसका संचालन और नियंत्रण कर रही थी।" उक्त लेखसे तो ऐसा लगता है कि सरकार चाहती थी कि यदि भीड़को भली-भाँति नियंत्रण और संयममें रखा जा सके तो ऐसा प्रदर्शन अवश्य किया जाये, जिससे कि वह यात्रियोंके लिए एक नमूने के सबकका काम दे। नेटाल-सरकारका पूरा लिहाज करते हुए भी कमसे-कम इतना तो कहा ही जा सकता है कि एक ब्रिटिश उपनिवेशकी सरकार द्वारा डराने-धमकाने के इस तरीकेकी इजाजत या बढ़ावा दिया जाना एक सर्वथा नया अनुभव है और यह ब्रिटिश संविधानके समादृत सिद्धान्तोंके सर्वथा विरुद्ध है। प्राथियोंकी नम्र सम्मति है कि इस प्रदर्शनके परिणाम पूरे उपनिवेश और भारतीय समाज, दोनोंके हितकी दृष्टिसे भयंकर सिद्ध हुए बिना नहीं रहेंगे, क्योंकि भारतीय लोग भी ब्रिटिश साम्राज्यका वैसा ही अंग होनेका दावा करते हैं जैसाकि यूरोपीय ब्रिटिश लोग। इसके कारण, दोनों समाजोंकी भावनाओंमें बिगाड़ पहले ही बढ़ है। इसके कारण यूरोपीय उपनिवेशियोंकी दृष्टि में भारतीयोंका दरजा गिर गया है। इसके कारण भारतीयोंकी स्वतन्त्रता कम करने के लिए अनेक कठोर उपाय सूझाये जाने लगे हैं। आपके प्रार्थियोंकी नम्र प्रार्थना और आशा है कि साम्राज्यकी सरकार इस सबको उपेक्षा और निश्चिन्तताकी दृष्टि से नहीं देख सकेगी, और न ही देखेगी। जो लोग ब्रिटिश साम्राज्यमें मित्रभावकी रक्षा करने और प्रजाजनोंके विभिन्न वर्गोंमें न्यायको बनाये रखने के लिए जिम्मेवार हैं, वही यदि उनमें फूट और दुर्भावना जगाने