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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

ही मुख-पत्र 'नेटाल मर्क्युरी' ने जो टिप्पणी प्रकाशित की है, उससे परिस्थितिकी गम्भीरताका परिचय भली-भांति हो जाता है :

"सज्जनो,—मैं उन अनेक प्रतिनिधियों में से हैं जिन्होंने कलके प्रदर्शनमें भाग लेनेवाले वतनी लोगोंके दंगई बरतावको चिन्तापूर्वक देखा था। बन्दरगाहके मार्गपर वतनी लोगोंके कई दल लाठियाँ घुमाते और पूरी आवाजसे चिल्लाते कई जगह पटरीपर कब्जा जमाकर खड़े हो गये थे; और बन्दरगाह पर कोई पाँच सौ या छह सौ लड़के हाथों में लाठियाँ लिये और गाते और चिल्लाते हुए इकट्ठे थे। उनमें अधिकतर लड़के 'टोग्ट' [कबीले] के थे। ऐसा मालूम पड़ता था कि वे शान्ति भंग करने की कसम खाकर आये हैं। इस मामलेका अधिक विवरण सुगमतासे मिल सकता है।

यदि आपको सम्मानित संस्थाने इस नगरमें कानून और अमनकी संरक्षिका होनेके नाते तुरन्त ही यह प्रकट करने के उपाय नहीं किये कि वह इस प्रकारके व्यवहारको सहन नहीं करेगी तो वतनी लोगोंपर कलकी कार्रवाईका बुरा असर और भी बढ़ जायेगा। जातीय विद्वेष अधिक फैल जायेगा। यह समझने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए कि कलके प्रदर्शनमें वतनो लोगोंको जिस तरह इकट्ठा किया गया था वैसा करना नगरके लिए कितने बड़े संकटका कारण हो सकता है। कुछ समय हुआ जबकि पुलिसके साथ उनका झगड़ा हो गया था और वतनी लोग घुड़दौड़के मैदानपर इकट्ठे हो गये थे। उसका भी ऐसा ही दुष्परिणाम निकला था।

मेरा निवेदन है कि कलके प्रदर्शनमें वतनियोंको शामिल करने से डर्बनके उज्ज्वल यशपर ऐसा धब्बा लग गया है जिसे तुरन्त ही धो डालना आपका कर्तव्य है। और मैं यह कहने का साहस कर सकता हूँ कि, यदि आपने इस मामलेको शक्तिके साथ हाथमें लिया तो आपके अधिकतर सदस्य इसे सन्तोषकी दृष्टिसे देखेंगे। मेरा सादर सुझाव है कि नगरनिगमको पहला काम यह करना चाहिए कि वह जाँच करे कि इन वतनी लोगोंको वहाँ इकट्ठा करने और उक्त अवसरपर इनके बरताव और नियन्त्रणके लिए जिम्मेवार व्यक्ति कौन था। और भविष्यमें इसकी पुनरावृत्ति न हो इसलिए अगर मौजूदा उपनियम इस अनिष्टको रोकने के लिए काफी न हों तो विशेष उपनियम भी बना दिये जायें।

यह इस कारण और भी आवश्यक हो गया है कि अटर्नी जनरल साहबने ऊपर लिखे हुए हालातमें जो दंगाई और खतरनाक लोग एकत्र हो गये थे उनका कोई जिक्र नहीं किया। परन्तु मुझे विश्वास है कि उनसे यह शोचनीय भूल केवल इस कारण हुई कि उन्होंने वह, सब-कुछ स्वयं नहीं देखा जो कि मैंने और अन्य लोगोंने देखा था। मेरा खयाल है कि उन 'टोग्ट' जवानोंका