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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

अमल कराने में सोच-विचारसे काम लें तो असुविधा कमसे-कम होती। वर्तमान विधेयकके अधीन, भय है कि, असुविधा बढ़ जायेगी; क्योंकि उसके अनुसार परवाना ले लेने-मात्रसे परवाना रखनेवाला गिरफ्तारीके दायित्वसे मुक्त नहीं हो जाता। परवाना तो साथ रखना जरूरी है, और वैसा करना सदैव आसान नहीं है। ऐसे उदाहरणोंका लेखा मौजूद है, जबकि भारतीयोंको, उनके घरोंके पास ही, परवाने न रखने के कारण गिरफ्तार करके बहुत ज्यादा सन्तापमें डाला गया है। यदि विधेयककी पाँचवीं उपधारा कायम रही तो सम्भावना यह है कि ऐसे मामले पहले से ज्यादा होंगे। और चूंकि विधेयक भारतीय समाजके हितके लिए पेश किया गया है, इसलिए आपके प्राथियोंका निवेदन है कि उस समाजकी भावनाओंका थोड़ा खयाल तो किया ही जाना चाहिए। अतएव, आपके प्रार्थी नम्रतापूर्वक विनती करते हैं कि विधेयककी पाँचवीं उपधारा उससे निकाल दी जाये, अथवा परिषद ऐसी कोई दूसरी राहत दे जिसे वह उपयुक्त और उचित समझे। और न्याय तथा दयाके इस कार्यके लिए आपके प्रार्थी, कर्त्तव्य समझकर, सदैव दुआ करेंगे, आदि आदि।

[अंग्रेजीसे]

कलोनियल ऑफिस रेकर्ड्स : नं॰ १८१, जिल्द ४२; तथा, आर्काइव्ज, पीटरमरित्सबर्ग, एन-पी-पी, जिल्द ६५६, प्रार्थनापत्र ६ भी; तथा नेटाल विधानपरिषदकी ३० मार्च, १८९७ की कार्यवाहीका अंश भी

३८. परिपत्र[१]

वेस्ट स्ट्रीट
डर्बन (नेटाल)
२७ मार्च, १८९७[२]

श्रीमन्,

हम, नेटाल-निवासी भारतीय समाजके प्रतिनिधि, निम्न हस्ताक्षरकर्त्ता, निवेदन करते है कि आप इसके साथ संलग्न, परम माननीय श्री जोजेफ़ चेम्बरलेनको भेजे हुए प्रार्थनापत्रपर विचार करने की कृपा करें। यह प्रार्थनापत्र एक ऐसी समस्याके विषयमें है जो इस समय नेटालमें भारतीयोंके लिए सर्वव्यापी बन गई है। यह प्रार्थनापत्र है तो बहुत लम्बा, परन्तु हमें हार्दिक आशा है कि आप इसके विषयके महत्त्वको देखते हुए इसकी लम्बाईका खयाल न करेंगे और इसे पुरा पढ़ लेंगे।

  1. यह जैसाकि स्पष्टः है, उपनिवेश-मंत्रीके नाम १५ मार्चके प्रर्थनापत्रकी एक-एक प्रतिके साथ इंग्लैंड के अनेक लोकसेवकोंको भेजा गया था।
  2. यह परिपत्र, वस्तुतः उल्लेखित प्रर्थनापत्र नेकालके गवर्नरको ६ अप्रैलको पेश कर देनेके बाद भेजा गया था।