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परिपत्र


इस उपनिवेशकी भारतीय समस्या इस समय बड़ी विकट स्थितिमें पहुँच गई है। उसका प्रभाव सम्राज्ञीकी इस उपनिवेशवासी भारतीय प्रजापर ही नहीं, परन्तु भारतकी सारी आबादीपर पड़ रहा है। वास्तवमें उसका रूप साम्राज्यव्यापी है। जैसाकि 'टाइम्स' ने लिखा है, प्रश्न यह है कि "वे एक ब्रिटिश-शासित देशसे दूसरेमें स्वतन्त्रतापूर्वक जा सकते हैं या नहीं, और उन देशोंमें जाकर ब्रिटिश प्रजाजनोंको प्राप्त अधिकारोंका दावा कर सकते हैं या नहीं?" नेटालके यूरोपीय कहते हैं कि कमसेकम हमारे देशमें तो वे ऐसा नहीं कर सकते। उक्त प्रार्थनापत्रमें, नेटालके इस रुखके कारण, भारतीयोंपर होनेवाले अत्याचारोंकी दुःखभरी कहानी सुनाई गई है।

लंदनमें शीघ्र ही ब्रिटिश उपनिवेशोंके प्रधानमंत्रियोंका एक सम्मेलन होनेवाला है। उसमें एकत्रित प्रधानमंत्रियोंके साथ श्री चेम्बरलेन इस प्रश्नपर विचार-विनिमय करेंगे कि उपनिवेशोंको भारतीयोंके विरुद्ध ऐसे कानून बनाने दिये जायें या नहीं जो केवल उनपर लागू हों, यूरोपीय लोगोंपर नहीं; और अगर बनाने दिये जायें तो किस हदतक। इस कारण हमारे लिए आवश्यक हो गया है कि नेटालमें हमारी जो स्थिति है, उसे संक्षेपमें आपके सामने पेश कर दें।

इस उपनिवेशमें भारतीयोंको जिन कानूनी निर्योग्यताओंका सामना करना पड़ रहा है, उनमें से कुछ ये हैं :

१. भारतीय लोग रातको ९ बजेके बाद, यूरोपीय लोगोंके समान परवाना दिखलाये बिना बाहर नहीं निकल सकते।

२. कोई भारतीय यदि इस आशयका परवाना न दिखला सके कि वह स्वतंत्र भारतीय है, तो उसे दिन के किसी भी समय गिरफ्तार किया जा सकता है। (यह शिकायत विशेष रूपसे इस नियमपर अमल करने के ढंगके विरुद्ध है)।

३. भारतीयोंको अपने पशु हाँककर ले जाते हुए भी अमुक प्रकारके परवाने रखने पड़ते हैं; यूरोपीयोंको ऐसा कोई परवाना नहीं दिखलाना पड़ता।

४. डर्बनके एक उपनियमके अनुसार वतनी नौकरों और भारतीय नौकरोंका पंजीकरण किया जाता है। इस उपनियममें भारतीयोंका जिक्र "एशिया की असभ्य जातियोंके अन्य लोग" कहकर किया गया है।

५. गिरमिटिया भारतीयोंका, स्वतंत्र हो जानेपर, या तो भारत लौट जाना जरूरी है—उनका मार्ग-व्यय उन्हें दे दिया जायेगा—या, यदि वे थोड़े स्वतंत्र होकर उपनिवेशमें बसना चाहें तो, उन्हें उसका मूल्य ३ पौंड वार्षिक व्यक्ति-करके रूपमें चुकाना पड़ेगा। (लंदन 'टाइम्स' ने इस स्थितिको "खतरनाक रूपमें दासताके निकट" की स्थिति बताया है।)

६. भारतीय यदि मताधिकार प्राप्त करना चाहें तो उनका या तो यह सिद्ध करना जरूरी है कि वे ऐसे किसी देशसे आये हैं जिसमें "संसदीय मताधिकारपर आधारित चुनावमूलक प्रातिनिधिक संस्थाएँ" मौजूद है,[१] या यह जरूरी है कि वे सपरिषद गवर्नरसे इस नियमसे मुक्त होनेका आज्ञापत्र प्राप्त

  1. देखिए खण्ड १, पृ॰ ३२३–२४ और पृ॰ ३३४–३६।