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५६. प्रार्थनापत्र : उपनिवेश-मंत्रीको

डर्बन
२ जुलाई, १८९७

सेवामें
परम माननीय जोजेफ़ चेम्बरलेन
सम्राज्ञीके मुख्य उपनिवेश-मंत्री
लंदन,

नेटालके भारतीय समाजके प्रतिनिधि निम्न हस्ताक्षरकर्ता ब्रिटिश भारतीयोंका प्रार्थनापत्र

नम्र निवेदन है :

कि नेटाल-उपनिवेशकी माननीय विधानसभा और माननीय विधानपरिषदने जो चार भारतीय विधेयक पास कर दिये हैं और जिन्हें गवर्नरकी स्वीकृति प्राप्त हो जाने के कारण सरकारी गज़टमें अधिनियमके रूपमें प्रकाशित कर दिया गया है, उन्हींके विषयमें प्रार्थी आपतक पहुँचनेका सादर साहस कर रहे हैं। इन विधेयकोंको जिस क्रमसे पास किया गया, उसके अनुसार इन चारोंके नाम ये हैं : संगरोध-विधेयक, प्रवासी-प्रतिबंधक विधेयक, व्यापार-परवाना विधेयक और गैर-गिरमिटिया भारतीय संरक्षण विधेयक।

इनमें से प्रथम तीन विधेयकोंका[१] जिक्र प्रार्थियोंने अपने पिछले प्रार्थनापत्रमें भी किया था और कहा था कि यदि ये विधेयक नेटालके विधानमंडल में पास हो गये तो शायद उन्हें विशेषतः इन्हींके कारण फिर आपकी सेवामें आना पड़े। अब ठीक वही करना प्रार्थियोंका दुर्भाग्यपूर्ण कर्तव्य हो गया है। उन्हें पूरा विश्वास है। कि आपको वे जो कष्ट दे रहे हैं, उसके लिए आप उन्हें क्षमा करेंगे, क्योंकि इन विधेयकोंकी तहमें जो प्रश्न है, उसका असर नेटालवासी भारतीय समाजके अस्तित्वपर ही पड़ता है।

इनमें से अन्तिम दो विधेयक ज्योंही सरकारी गज़टमें अधिनियमोंके रूपमें प्रकाशित हुए, त्योंही प्राथियोंने माननीय उपनिवेश-सचिवसे लिखकर प्रार्थना थी[२] की विधेयकोंका सम्राज्ञीकी सरकारके पास भेजना इस प्रार्थनापत्रके पहुँचने तक स्थगित रखा जाये। उसका माननीय उपनिवेश-सचिवने यह जवाब दिया कि विधेयक पहले ही भेजे जा चुके हैं। इसपर नीचे दिया हुआ नम्र तार[३] आपकी सेवामें भेजा गया था :

  1. १५ मार्चके; देखिए पृ॰ २०३–११।
  2. देखिए पृ॰ २७९।
  3. देखिए पृ॰ २८०।

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