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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भी जाति या रंगके पक्ष-विपक्षमें भेदभाव नहीं करती", परन्तु उसी साँसमें भारतीयोंके सम्बन्धमें उपनिवेशों द्वारा अपनाई गई नीतिको भी मंजूर करके नेटाल-प्रवासीप्रतिबन्धक अधिनियमको बिना किसी शर्त के स्वीकार कर लिया है। इस अधिनियमकी एक प्रति और उसके सम्बन्धमें अपना प्रार्थनापत्र हम कुछ मास पूर्व आपकी सेवामें भेज चुके हैं।[१]

श्री चेम्बरलेन इस तथ्यसे अपरिचित नहीं हो सकते कि नेटाल-कानन जानबूझकर इसी इरादेसे स्वीकृत किया गया था कि इसे प्रायः एकमात्र भारतीयोंके विरुद्ध प्रयुक्त किया जाये। हमारे प्रार्थनापत्रमें दिये हुए उद्धरणोंसे यह भली-भाँति सिद्ध हो जाता है। नेटाल उपनिवेशके प्रधानमंत्री परम माननीय श्री एस्कम्बने इस प्रवासी विधेयकको प्रस्तुत करते हुए यह भी कहा था कि अभीष्ट लक्ष्यकी, अर्थात् भारतीयोंका प्रवेश रोक देनेकी, सिद्धि क्योंकि प्रत्यक्ष उपायोंसे नहीं हो सकेगी, इसलिए मुझे अप्रत्यक्ष उपायोंका अवलम्बन करना पड़ रहा है।

इस विधेयकको प्रायः सर्वसम्मतिसे अब्रिटिश और बेईमानी-भरा बतलाया गया था। वस्तुतः यह अँधेरेमें किया गया छुरेका वार था। हमें यह देखकर बहुत निराशा हुई कि इस विधेयकपर भी श्री चेम्बरलेनने अपने अनुमोदनकी छाप लगा दी। हम नहीं जानते कि अब हमारी स्थिति क्या है और हमें क्या करना चाहिए। इस अधिनियमका प्रभाव हमपर पड़ने भी लगा है। कुछ ही दिनोंकी बात है कि इकहत्तर नेटालवासी भारतीय अपना माल बेचने ट्रान्सवाल गये थे। उन्हें नेटाल लौटने के कुछ समय पश्चात् गिरफ्तार कर लिया गया और उनके मुकदमेकी सुनवाईके समय उन्हें वजित प्रवासी बतलाकर छह दिनतक जेलमें रखा गया।[२] वे कुछ कानूनी अपवादोंके कारण छोड़ दिये गये, परन्तु यदि ऐसा न होता तो मुकदमा कई दिन चलता रहता और ब्रिटिश भूमिपर रहने का अधिकार प्राप्त करने से पहले, उन्हें शायद कई सौ पौंड व्यय करने पड़ जाते। अब भी सात दिनकी सुनवाई में उन्हें कुछ कम व्यय नहीं करना पड़ा। ऐसी घटनाएँ समय-समयपर घटित होती ही रहेंगी और फिर जो लोग नेटालमें पहले से आबाद हो चुके है, केवल वही यहाँ आ सकेंगे।

श्री चेम्बरलेनने कहा है कि कोई प्रवासी इसलिए अवांछनीय हो सकता है कि "वह मैला है या वह दुराचारी है, या वह कंगाल है या उसमें कोई दूसरी आपत्तिजनक बात है, जिसकी परिभाषा संसदके अधिनियममें की जा सकती है।" परन्तु उन्होंने ही ट्रान्सवाल-सरकारको भेजे हुए अपने खरीतेमें स्वयं माना है कि जिन भारतीयोंका नेटालमें प्रवास नेटाल-अधिनियम द्वारा रोका गया है, वे न दुराचारी हैं न मैले-कुचले। वे कंगाल तो निश्चय ही नहीं हैं। नेटाल-अधिनियमकी सबसे बड़ी निर्बलता यह है कि शायद जिन लोगोंके दुराचारी या मैला-कुचैला होनेकी सम्भावना है उनको प्रविष्ट करने की इसमें विशेष व्यवस्था की गई है। वे हैं गिरमिटिया भार

  1. देखिए पृ॰ २८२–३०३ और ३०४–५।
  2. देखिए पिछला शीर्षक।