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दक्षिण अफ्रीकावासी ब्रिटिश भारतीयोंकी कष्ट-गाथा

लोगोंमें आत्महत्या करनेवालों की संख्या ६ दर्ज हुई है। १८९४ में एक बड़ी संख्यामें आत्महत्याएँ हुई थीं। जो हो, यह एक बहुत बड़ा प्रतिशत-मान है। इससे सन्देह होता है कि कुछ जायदादोंमें 'कुली' मजदूरोंके साथ जैसा व्यवहार करने की प्रथा प्रचलित है, वह गुलामोंके प्रति किये जानेवाले व्यवहारसे बहुत ज्यादा मिलता-जुलता है। कुछ खास जायदादोंमें ही इतनी आत्महत्याएँ होती हैं, यह बात अत्यन्त अर्थ-गभित है। इस विषयमें जाँच-पड़ताल करना जरूरी है। जो अभागे लोग जिन्दगीसे मौतको ज्यादा पसन्द करते हैं, उनके साथ किया जानेवाला व्यवहार क्या ऐसा है जिससे उनका जीवन असह्य हो जाता है? इसका निश्चय करने की दृष्टिसे किसी प्रकारकी जाँच-पड़ताल नहीं की जाती। यह विषय ऐसा है कि, सम्भव है, इसकी ओर लोगोंका ध्यान न जाये। परन्तु ऐसा होना नहीं चाहिए। हालमें ही दक्षिणको एक जायदादमें कुछ कुलियोंने काम छोड़ दिया था। मुकदमेके दौरान उन कैदियोंने अदालतके सामने खुल्लमखुल्ला कहा कि वे अपने मालिकके पास लौटने के बजाय आत्महत्या करना पसन्द करेंगे। मजिस्ट्रेटने कहा कि उसके पास सिवा इसके कि उन्हें गिरमिटको अवधि पूरी करने के लिए भेज दिया जाये, दूसरा कोई विकल्प नहीं है। अब समय आ गया है, जबकि उपनिवेशको प्रबन्ध करना चाहिए कि ऐसे फरियादी किसी जाँच-अदालत और जनताके सामने अपनी शिकायतोंसम्बन्धी तथ्य पेश करने का मौका पा सकें। यह भी वांछनीय है कि मंत्रिमंडलमें भारतीय मामलोंके एक मंत्रीको नियुक्ति की जाये। आजके हालातमें, गिरमिटिया भारतीयोंपर बगानोंमें चाहे जैसी भी पाशविकताका व्यवहार क्यों न हो, उनके पास उसके खिलाफ अपील करने का कोई कारगर तरीका है ही नहीं।

फिर भी हम अपने कथनसे यह खयाल पैदा करना नहीं चाहते कि नेटालमें गिरमिटिया भारतीयोंका जीवन दूसरे देशोंकी अपेक्षा ज्यादा मुश्किल है, या यह उपनिवेशके सब भारतीयोंकी सर्वसामान्य शिकायतका हिस्सा है। उलटे, हम जानते है कि नेटालमें ऐसी जायदादें मौजूद हैं, जिनमें भारतीयोंके साथ बहुत अच्छा व्यवहार किया जाता है। इसके साथ ही, हम नम्रतापूर्वक यह भी कहते हैं कि गिरमिटिया भारतीयोंकी अवस्था जैसी होनी चाहिए थी, पूरी तरह वैसी नहीं है और कुछ बातें ऐसी हैं, जिनकी ओर ध्यान देना आवश्यक है।

जब किसी गिरमिटिया भारतीयका मुफ्त परवाना खो जाता है, तो उसे उसकी नकलके लिए तीन पौंडकी रकम देनी पड़ती है। इसका कारण यह बताया जाता है कि भारतीय अपने परवाने चोरीसे बेच देते हैं। परन्तु इस प्रकारकी चोरीकी बिक्रीके अपराधमें तो उन्हें कानून द्वारा सजा दी जा सकती है। जो आदमी अपना परवाना बेच देता है, उसे तो ३ पौंड देनेपर भी कभी उसकी नकल नहीं मिलनी