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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

किया जा सकता। इसपर भी, कोई भारतीय वहाँ अचल सम्पत्ति नहीं रख सकता और न किसी तरहका व्यापार या खेती ही कर सकता है।

अध्यक्षको अधिकार है कि वह वहाँ रहने की ऐसी खंडित अनुमति "परिस्थितियों के अनुसार" दे या न दे। इसके अलावा, वहाँ रहनेवाले प्रत्येक भारतीयको १० पौंड वार्षिक कर देना पड़ता है। व्यापार या खेती-सम्बन्धी धाराके पहली बार भंग करने की सजा २५ पौंड जुर्माना या तीन महीने की सादी या कड़ी कैद है। बादमें सब अपराधोंके लिए सजा दूनी होती जाती है।[१]

तो, यह स्थिति है दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंकी। केवल डेलागोआ-बे इसका अपवाद है। वहाँ भारतीयोंका बहुत आदर होता है और उन्हें किन्हीं खास निर्योग्यताओं के शिकार बनकर नहीं रहना पड़ता। उस नगरके मुख्य मार्गपर लगभग आधी स्थावर सम्पत्ति के मालिक भी वे हैं। उनमें से ज्यादातर व्यापारी हैं। कुछ सरकारी नौकरियोंमें भी हैं। दो पारसी सज्जन इंजीनियर हैं। एक पारसी सज्जन और भी है जिन्हें 'सेन्योर एडल' नामसे डेलागोआ-बे का बच्चा-बच्चा जानता है। परन्तु व्यापारी लोग अधिकतर मुसलमान और बनिये हैं, जो पुर्तगीज़ भारतसे आये हैं।

इस दुर्दशाके कारण और उपायकी जाँच करना अभी बाकी है। यूरोपीयोंका कहना है कि भारतीयोंकी आदतें अस्वच्छ है, वे कुछ खर्च नहीं करते और झूठे तथा चरित्रहीन हैं। ये आपत्तियाँ नरमसे-नरम विचारोंवाले पत्रोंकी हैं। दूसरे तो हमें सीधे-सीधे गालियाँ ही देते हैं। झूठेपन और अस्वच्छ आदतोंका आरोप आंशिक रूपमें सही है। अर्थात् दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंकी आदतें, कुल मिलाकर, ऊँचेसेऊँचे खयालसे जैसी होनी चाहिए वैसी अच्छी नहीं हैं। परन्तु यूरोपीय समाजने हम पर जैसा आरोप लगाया है और उसका जिस तरह उपयोग किया गया है, उसको हम बिलकुल नामंजूर करते हैं। और हमने यह बताने के लिए दक्षिण आफ्रिकाके डॉक्टरोंका मत उद्धृत किया है कि "वर्गका विचार किया जाये तो, निम्नतम वर्गके भारतीय निम्नतम वर्गके यूरोपीयोंकी अपेक्षा ज्यादा अच्छी तरह और ज्यादा अच्छे मकानोंमें रहते हैं और वे स्वच्छताकी व्यवस्थाका ज्यादा खयाल रखते हैं।" डॉक्टर वील, बी॰ ए॰, एम॰ बी॰ बी॰ एस॰ (कैटब) ने भारतीयोंको "शारीरिक दृष्टिसे स्वच्छ और गन्दगी तथा लापरवाहीसे उत्पन्न होनेवाले रोगोंसे मुक्त" पाया है। उन्होंने यह भी देखा है कि "उनके मकान आम तौरपर साफ रहते हैं और सफाईका काम वे राजी-खुशीसे करते हैं।[२] परन्तु हम यह नहीं कहते कि इस विषयमें हम सुधारक

  1. 'हरी पुस्तिका' के प्रकाशित होने पर १४ सितम्बर को रायटरने उसका एक भ्रमोंत्पादक सारांश अखबारों को भेज दिया। गांधीजी ने पुस्तिका में भारतीयोंके प्रति दुर्व्यवहारके जो आरोप लगाते थे उनका नेटाल-स्थित एजेंट जनरलने खण्डन करनेका प्रयत्न किया। मद्रासके भाषणमें गांधीजी ने एजेंट जनरलकी सफाईका प्रतिवाद किया देखिए पृ॰ ८३–८९।
  2. देखिए खण्ड १, पृ॰ २२१–२२।