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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

इन शब्दोंमें किया है : "शान्तिप्रिय, कानूनका पालन करनेवाले, गुणी लोगोंका समुदाय", जिसे अपने काम-धंधे चलाने में अब जिन बाधाओंका सामना करना पड़ सकता है, उन्हें पार करने के लिए शायद अपनी असंदिग्ध उद्यमशीलता, बुद्धिमत्ता और अदम्य श्रमनिष्ठा ही पर्याप्त होगी। और, उन्होंने ट्रान्सवाल-सरकारके सामने, बादमें, मैत्रीभावसे भारतीयोंका मामला पेश करने की स्वतंत्रता अपने लिए सुरक्षित रखी है।

प्रश्न इस समय यहीपर है। यद्यपि पंच-फैसला स्वीकार कर लिया गया है, यह दिखलाईदेगा कि अनेक प्रश्न अब भी अनिर्णीत पड़े हैं। अब ट्रान्सवालमें भारतीय कहाँ रहेंगे? क्या उनके वस्तु-भंडार बन्द कर दिये जायेंगे? अगर हाँ, तो २०० या ३०० व्यापारी अपने जीविकोपार्जनके लिए क्या करेंगे? क्या उन्हें व्यापार भी पृथक् बस्तियोंमें ही करना होगा? परन्तु ट्रान्सवालमें जो बाधाएँ हैं उनकी सूची इतनेसे पूरी नहीं हो जाती।

अधिनियम २५ (१० जनवरी, १८९३) के खण्ड ३८ में कहा गया है कि :

देशी और दूसरे गैर-गोरे लोगोंको गोरोंके लिए निश्चित डिब्बोंमें, अर्थात् पहले और दूसरे दर्जेमें, यात्रा करने की इजाजत नहीं है।

ट्रान्सवालकी रेलगाड़ियोंमें बिलकुल बेदाग कपड़े पहने हुए बहुत ही इज्जतदार भारतीय भी अधिकारपूर्वक पहले या दूसरे दर्जमें यात्रा नहीं कर सकते। उन्हें हर तरहके और हर स्थितिके देशी लोगोंके साथ तीसरे दर्जे के डिब्बे में ठेल दिया जाता है। इससे ट्रान्सवालके भारतीयोंको बहुत असुविधा होती है।

ट्रान्सवालमें परवानोंका एक नियम है। उसके अनुसार, देशी लोगोंके समान भारतीयोंके लिए भी यह जरूरी है कि वे एक स्थानसे दूसरे स्थान जानेके समय एक शिलिंगका एक परवाना ले लें।

सन् १८९५ में सम्राज्ञी-सरकार और ट्रान्सवाल-सरकारके बीच कमांडोज़ ट्रीटी (अनिवार्य सैनिक भरती-सम्बन्धी संधि) हुई थी। उसके अन्तर्गत ब्रिटिश प्रजाओंको अनिवार्य सैनिक सेवासे मुक्त कर दिया गया था। यह संधि उसी साल ट्रान्सवालकी फोक्सराटके सामने पुष्टि के लिए पेश हुई थी।

फोक्सराटने संधिका पुष्टीकरण इस संशोधन या शर्तके साथ किया कि ब्रिटिश प्रजाका अर्थ केवल गोरे लोग होगा। भारतीयोंने तुरन्त ही श्री चेम्बरलेनको तार दिया और उनके पास एक प्रार्थनापत्र भी भेजा (सहपत्र ९)।[१] वह प्रश्न इस समय श्री चेम्बरलेनके विचाराधीन है।

लंदन 'टाइम्स' ने इस विषयपर एक बड़ा सहानुभूतिपूर्ण और जोरदार अग्रलेख लिखा था (साप्ताहिक संस्करण १०-१-९६)।

जोहानिसबर्गके सोनेकी खानोंके कानूनोंमें भारतीयोंका देशी सोना रखना अपराध करार दिया गया है।

  1. देखिए खण्ड १, पृ॰ २७४–७५।