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४. भाषण : बम्बईको सार्वजनिक सभामें[१]

२६ सितम्बर, १८९६

मैं आज आपके सामने इस प्रमाणपत्र[२] पर हस्ताक्षर करनेवालों के प्रतिनिधिकी हैसियतसे खड़ा हूँ। हस्ताक्षरकर्ताओंका दावा है कि वे उस दक्षिण आफ्रिकामें रहनेवाले १,००,००० भारतीयोंका प्रतिनिधित्व करते हैं, जो जोहानिसबर्गकी सोनेकी विशाल खानों और डॉ॰ जेमिसनके विगत हमलेके[३] कारण अकस्मात् प्रसिद्धि पा गया है। यही मेरी एकमात्र योग्यता है। मैं बहुत कम बोलनेवाला व्यक्ति हूँ। फिर भी, आपके सामने जिस विषयकी पैरोकारी इस सायंकाल मुझे करनी है, वह इतना बड़ा है कि मैं यह मान लेनेकी धृष्टता करता हूँ कि आप वक्ताके या, यों कहिये कि इस निबन्धवाचकके दोषोंपर ध्यान न देंगे। एक लाख भारतीयोंके हित भारतके तीस करोड़ लोगों के हितोंके साथ घनिष्ठ रूपसे बँधे हुए हैं। दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीयोंके दुखड़ोंका सवाल भारतवासी भारतीयोंके भावी कल्याण और भावी देशान्तर-प्रवासपर बुरा असर डालनेवाला है। इसलिए मैं नम्रतापूर्वक मानने का साहस करता हूँ कि अगर यह प्रश्न अबतक भारतके वर्तमान मुख्य प्रश्नोंमें से एक नहीं बन गया है, तो अब बन जाना चाहिए। इस प्रस्तावनाके साथ, अब मैं जितना हो सके उतने संक्षेपमें दक्षिण आफ्रिकाकी पूरी परिस्थिति, जिस रूपमें वह वहाँके भारतीयोंपर असर करती है, आपके सामने पेश करूँगा।

हमारे वर्तमान प्रयोजनकी दृष्टिसे दक्षिण आफ्रिका इन राज्योंमें विभक्त है : शुभाशा अन्तरीपका ब्रिटिश उपनिवेश, नेटालका ब्रिटिश उपनिवेश, जूलूलैंडका ब्रिटिश उपनिवेश, ट्रान्सवाल या दक्षिण आफ्रिकी गणराज्य, ऑरेंज फ्री स्टेट, रोडेशिया या चार्टर्ड टेरिटरीज और डेलागोआ-बे तथा बैराके पोर्तुगीज उपनिवेश।

पोर्तुगीज़ प्रदेशको छोड़कर दक्षिण आफ्रिकामें लगभग १,००,००० भारतीय निवास करते हैं। उनमें से अधिकतर मद्रास तथा बंगालके मजदूर-वर्गके लोग हैं।

  1. सभा बम्बई प्रेसिडेन्सी एसोसिएशन के तत्वावधानमें फ्रामजी कावसजी इन्स्टि्टयूटमें हुई थी और उसकी अध्यक्षता सर फिरोजशाह मेहताने की थी भाषण पुस्तिका के रूप में न छपा था परन्तु छपी हुई पुस्तिका प्राप्त न होने के कारण भाषण की यह लिपि टाइम्स ऑफ इण्डिया और बाँम्बे गजत में प्रकाशित उसकी रिपोर्टों से तैयार की गयी है।
  2. देखिए, "प्रमाणपत्र", पृ॰ १।
  3. ट्रान्सवाल पर केप काॅलोनी से डाॅ॰ जेमिसन द्वारा २९ दिसम्बर १८९५ किया गया हमला जो विफल हो गया था हमला वस्तुतः केप काॅलोनीके प्रधानमंत्री रोड्स की प्ररेणापर किया गया था। और उसे आरम्भ में उसे ब्रिटिश सरकारका अप्रकट समर्थन भी प्राप्त हुआ था। जिन घटनाओं के कारण बोअर-युद्ध हुआ उसमें से यह एक था।

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