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भाषण : बम्बईकी सार्वजनिक सभा में

यह अनुभव घोर कसौटीका होता है। इसमें जो अपमान भरा है, सो तो है ही। घोडागाड़ीपर बहुत लम्बी-लम्बी यात्राएँ करनी पड़ती है और निश्चित मंजिलोंपर सवारियोंके लिए ठहरने के स्थान और भोजनका प्रबन्ध किया जाता है। इन मंजिलोंमें किसी भारतीय को ठहरने की जगह नहीं मिलती, न भोजनकी मेजपर ही जगह दी जाती है। ज्यादासे-ज्यादा इतना होता है कि वह रसोईघरके पीछेसे भोजन खरीद ले और अपने लिए जैसा अच्छा प्रबन्ध कर सके, करे। भारतीयोंको जो अवर्णनीय कष्ट सहने पड़ते हैं उनके उदाहरण सैकड़ोंकी संख्या में दिये जा सकते हैं। सार्वजनिक स्नानघर भारतीयोंके लिए नहीं है। हाई स्कूलोंमें भारतीय भरती नहीं हो सकते। मेरे नेटाल छोड़ने के एक पखवारे पहले एक भारतीय विद्यार्थीने डर्बन हाई स्कूलमें प्रवेशके लिए अर्जी दी थी। उसकी अर्जी नामंजूर कर दी गई। प्राथमिक शालाएँतक भारतीयोंके लिए बिलकुल खुली नहीं हैं। नेटालके एक छोटे से गाँव वेरुलममें एक भारतीय मिशनरी-स्कूल-शिक्षकको अंग्रेजोंके एक गिरजाघरसे खदेड़ दिया गया था। नेटालकी सरकार एक "कुली-मंत्रणापरिषद" करने को व्याकुल है। उसने सरकारी तौरपर परिषदको यह नाम दिया है। परिषदका प्रयोजन सारे दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयों-सम्बन्धी कानूनोंको एक रूप देना और भारतीयोंकी ओरसे ब्रिटिश सरकारकी घुड़कियोंका संयुक्त रूपसे मुकाबला करना है। यह है आम भावना दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयके विरुद्ध। अलबत्ता पोर्तुगीज़ प्रदेश इसके अपवाद है। वहाँ भारतीयोंका आदर किया जाता है और उन्हें साधारण जनतासे अलग कोई विशेष कष्ट नहीं हैं। आप आसानीसे कल्पना कर सकते हैं कि किसी शिष्ट भारतीयके लिए ऐसे देशमें रहना कितना कठिन होगा। सज्जनो, मुझे तो पक्का विश्वास है कि अगर हमारे अध्यक्ष दक्षिण आफ्रिका जायें तो उन्हें भी वहाँके होटलमें स्थान पाना, हमारे रोजमर्राके मुहावरेके अनुसार, "घोर कठिन" महसूस होगा। नेटालमें वे रेलगाड़ीके पहले दर्जे के डिब्बेमें बहुत आराम महसूस न करेंगे और फोक्सरस्ट पहुँचने के बाद उन्हें बिना किसी शिष्टाचारके पहले दर्जे के डिब्बेसे उतार दिया जायेगा और एक टीनके डिब्बेमें बैठा दिया जायेगा, जिसमें काफिरोंको भेड़ोंकी तरह ठूंस दिया जाता है। तथापि हम चाहते हैं कि हमारे बड़े लोग तकलीफके इन क्षेत्रोंमें जायें—भले सिर्फ यह देखने और समझने के लिए ही क्यों न हो कि उनके देशभाई कैसी यातनाएँ भोग रहे हैं। और मैं विश्वास दिलाता हूँ कि अगर हमारे अध्यक्ष कभी वहाँ आये तो हम उनका पूरा-पूरा राजसी स्वागत करके इन कठिनाइयोंका बदला चुका देंगे। कमसे-कम हालमें तो हममें इतना ऐक्य, इतना उत्साह है ही। यूरोपीय हमें अवनतिके गर्तमें गिरा देना चाहते हैं। उस अधःपतनके विरुद्ध हम लगातार संघर्ष कर रहे हैं। यूरोपीय तो चाहते हैं कि हमें उन ठेठ काफिरोंके स्तरतक गिरा दें, जिनका पेशा शिकार है और जिनकी एकमात्र महत्त्वाकांक्षा पत्नी खरीदने के लिए अमुक संख्यामें पशु इकट्ठा कर लेने और फिर आलस्य तथा नग्नावस्थामें जीवन बिता देनेकी है। पढ़ने में आता है कि ईसाई सरकारोंका ध्येय यह है कि वे जिन लोगोंके सम्पर्क में आयें या वे जिनका नियंत्रण करती हों उनको ऊपर उठायें। परन्तु दक्षिण