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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

आधारित प्रातिनिधिक संस्थाएँ अबतक नहीं हैं, उनके निवासियों या उनकी पुरुष शाखाके वंशजोंको किसी मतदाता-सचीमें तबतक शामिल नहीं किया जायेगा जबतक कि उन्होंने सपरिषद गवर्नरसे इस कानूनके अमलसे छूट प्राप्त न कर ली हो।" इसके अमलसे उन लोगोंको भी बरी रखा गया है, जिनके नाम पहलेसे ही वाजिबी तारपर मतदाता-सूचीमें शामिल हैं। यह विधेयक विधानसभामें पेश किये जानके पहले श्री चेम्बरलेनके पास मंजरीके लिए भेजा गया था। जो कागजात प्रक हुए है उनसे श्री चेम्बरलेनका मत यह दिखलाई पड़ता है कि भारतमें संसदीय मताधिकारपर आधारित चुनावमूलक प्रातिनिधिक संस्थाएँ नहीं हैं। चूंकि नेटाल-संसदके सामने हम सफल नहीं हुए, इसलिए श्री चेम्बरलेनके इन विचारोंका अधिकतम आदर करते हुए हमने उन्हें एक स्मरणपत्र भेजकर बताया कि विधेयकका मंशा पूरा करने के लिए, अर्थात् कानूनी तौरपर बात की जाये तो, भारतमें संसदीय मताधिकारपर आधारित चुनावमूलक प्रातिनिधिक संस्थाओंका अस्तित्व रहा है, और अब भी है। ऐसा मत लन्दन 'टाइम्स'ने व्यक्त किया है, यही मत नेटालके समाचार-पत्रोंका है और यही विधेयकके पक्षमें मत देनेवाले सदस्यों और नेटालके एक सुयोग्य न्यायशास्त्रीका भी है। हम यहाँ के बड़े-बड़े न्यायशास्त्रियोंकी राय जानने को बहुत उत्सुक हैं। ऐसा विधेयक मंजूर करने का मंशा 'चित भी मेरी, पट भी मेरी' का खेल खेलना और इस तरह भारतीय समाजको तंग करना मात्र है। नेटाल विधानसभाके अनेक सदस्योंका भी खयाल है कि विधेयकसे भारतीय समाज अनन्त मुकदमेबाजीमें फंस जायेगा और उसमें क्षोभ पैदा हो जायेगा। ये सदस्य अन्यथा भारतीयोंके विरोधी है।

सरकारी मुखपत्रका कथन सारांशतः यह है : "हम स्वीकार कर सकते हैं तो यही विधेयक, दूसरा कोई नहीं। अगर हम सफल हो गये, अर्थात् अगर भारतको ऐसा देश घोषित कर दिया गया जिसमें विधेयकमें उल्लिखित संस्थाएँ नहीं हैं, तो अच्छा ही है। अगर नहीं, तो भी हम कुछ खोते नहीं। हम दूसरे विधेयकका प्रयोग करेंगे—हम सम्पत्तिजन्य योग्यताका मान बढ़ा देंगे, शिक्षा-सम्बन्धी कसौटी जारी कर देंगे। अगर ऐसे विधेयकपर आपत्ति की जाये तो भी हमें डरने की जरूरत नहीं, क्योंकि डरने का कारण ही कहाँ है? हम जानते हैं कि भारतीय कभी भी हमपर प्रबल नहीं हो सकते।" अगर मेरे पास समय होता तो मैं ठीक वही शब्द आपके सामने पेश कर देता। वे इनसे बहुत ज्यादा जोरदार हैं। जिनको विशेष दिलचस्पी हो वे उन्हें 'हरी पुस्तिका' में देख सकते हैं। तो, इस प्रकार हम नेटालके पैस्टर [शल्यचिकित्सक] के घातक चाकूसे चीरे-फाड़े जानेके लिए उपयुक्त पात्र माने गये हैं। फर्क सिर्फ इतना ही है कि, पेरिसका पैस्टर लाभ पहुंचाने के लिए ऐसा करता था। हमारा नेटालका पैस्टर शुद्ध दुराग्रहके कारण, चीर-फाड़से मनोरंजनके लिए ऐसा करता है। यह स्मरणपत्र इस समय श्री चेम्बरलेनके विचाराधीन है।

भारतकी स्थिति नेटालकी स्थितिसे बिलकुल भिन्न है। इस बातपर मैं जितना जोर दूँ उतना ही थोड़ा होगा। भारतमें बड़े-बड़े लोगोंने मुझसे यह प्रश्न पूछा है : "आपको भारतमें ही मताधिकार कहाँ प्राप्त है? अगर कुछ है भी तो वह केवल