पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/११४

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" . उ० ४६. पेचीदा मामला एक भाई "स्वदेशी" उपनामसे तथा सरल भावसे कुछ प्रश्न पूछते है। उन्होने मेरी जानकारीके लिए अपना नाम भी दिया है। वे सुशिक्षित व्यक्ति है। उनके प्रश्न समझने योग्य है। वे पूछते है. प्र० काग्रेसमे सर्वसम्मतिसे असहयोगका जो प्रस्ताव पास हुआ है उसमें अपना योगदान देनेवाला प्रत्येक प्रतिनिधि क्या उस प्रस्तावके प्रत्येक मुद्देपर धीरे-धीरे नहीं बल्कि तुरन्त ही अमल करनेके लिए नहीं बँधा हुआ है? उ० • निश्चय ही बंधा हुआ है। प्र. यदि वह ऐसा करनेके लिए बंधा हुआ है और ऐसा नहीं करता तो क्या उक्त प्रतिनिधि असहयोगको एक खेल नही समझता? ऐसे लोग क्या अपने-आपको और दूसरोको धोखा नहीं देते? अवश्य धोखा देते है, इतना ही नही बल्कि वे असह्योगके सघर्षको धक्का पहुंचाते है। वे अपनी सिपहगरीकी शर्तका पालन नहीं करते । जहाँ सिर्फ पांच फुट ऊँचे भादमी ही की भरती की जाती हो वहाँ चार फुटका आदमी काम नहीं आता, उसी तरह असहयोगकी सेनामे रहकर जो उसकी शर्तोका पालन नहीं करते वे असह- योगके कानूनका अविनय भग करते है और गुनहगार बनते है। प्र०: यदि अधिकाश असहयोगी ऐसे ही हुए तो क्या इससे आपको निराशा नहीं होगी? इससे क्या आपका विचित्र आशावाद वह नही जायेगा? उ० : अभी तो जनताकी कसौटी हो रही है। लेकिन यदि अधिकाश असह- योगी तीस जूनके बाद भी वैसे ही बने रहे तो निस्सन्देह मुझे बहुत दुख होगा। तथापि इससे मेरा आशावाद ढह नही जायेगा। अबतक मै स्वय अपने बारेमे आशावान हूँ तबतक मेरा आशावाद टूट नही सकता और सबको अपने समान समझनेवाला मैं यही मानता हूँ कि जो मुझे सहज लगता है और जो करने योग्य है उसे सब लोग अवश्य करेंगे। धोखा देनेवाले अपने-आप निकल जायेगे। प्र०: क्या ऐसे प्रतिनिधियोका प्रगट रूपसे तिरस्कार करनेकी जरूरत नहीं है? उ०: यदि मै जनरल डायरका तिरस्कार नहीं करता तो फिर मै दुर्बल प्रति- निधियोका तिरस्कार कैसे कर सकता हूँ? यह लड़ाई आत्मशुद्धिकी है और इसमे किसीके तिरस्कारकी कोई गुजाइश नहीं है । लेकिन ऐसे व्यक्तियोका निस्सन्देह बहिष्कार किया जाना चाहिए अर्थात् उन्हें प्रतिनिधि न चुना जाये, वे स्वयसेवक और पदाधिकारी भी न बन सके। मैं मानता हूँ कि हमारा वातावरण दिन-प्रतिदिन साफ होता जाता है। अब ऐसी समितियां बहुत कम रह गई है जहाँ वकालत न छोडने- वाले वकील अभीतक ओहदोपर है। सरकारी स्कूलोमे पढनेवाले विद्यार्थी कदाचित् ही स्वयसेवक बनते है। सभी अपनी-अपनी मर्यादाको समझ गये जान पड़ते है।