पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/११६

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- -- - - पेचीदा मामला ९५ भी संन्यास नही देखता। मैंने ऐसी कोई चीज नही मांगी है जो अन्य राष्ट्रोकी जनताने न की हो। शान्ति कदाचित् नई वस्तु जान पडेगी। लेकिन सिखोने उसकी मर्यादित साधना करके दिखा दी है। अधिक गहराईमे जानेपर दिखाई देगा कि अग्रेजोने जव भी चाहा शान्तिका पालन किया है। मैने तो यहाँतक कहा है कि अगर हम शान्तिका नीतिके रूपमे- एक खास अवसरपर इस्तेमाल किया जानेवाला हथियार समझकर -पालन करेंगे तो भी हम विजय प्राप्त करेगे। मेरी कल्पनामे शान्ति सबलका - सच्चे क्षत्रियका हथियार है। लेकिन हम उसे दुर्बलका हथियार मानें तो भी शस्त्र-वलको इस समय असम्भव मानकर हिन्दुस्तान यदि भरनेका ही मन्त्र साधे और मारना छोड दे तो आज ही स्वराज्य प्राप्त किया जा सकता है। आप शासकके विरुद्ध असहयोग करवाते है तो फिर आप भगियोको विधान परिषदोमे जानेवाले सहकारियोकी सेवा करनेसे और उनसे असहयोग करनके लिए कहनेवाले लोगोको क्यो रोकते है? हम शासकके विरुद्ध असह्योग नही करते, हमारा असहयोग शासकोकी नीतिके विरुद्ध है। हमारा असहयोग व्यक्तिगत नहीं है। हमने भगी अथवा कुम्हारको किसी भी अधिकारीकी सेवा करनेसे नहीं रोका है। वैसा करना मै अभीष्ट भी नहीं मानता । तो फिर हमारे ही जो भाई मतभेदके कारण विधान परिषदो आदिमे जाते है भगियो आदिको उनका काम करनेसे हम कैसे रोक सकते है ? हम तो सभीको प्रेमके धारा जीतनेकी उम्मीद रखते है । अगर प्रेमसे न हो तो हम किसीको जोर-जबरदस्तीसे अपनी ओर नहीं लाना चाहते बल्कि हम उसकी बुद्धिको जाग्रत करके, उसे समझा- बुझाकर अपने मतका प्रचार करना चाहते है। असहयोगका मूल तिरस्कार नहीं बल्कि प्रेम है; असहयोगका मूल दुर्वलता नही अपितु अतुल बल है, असहयोगका मूल असत्य नहीं बल्कि सत्य है, उसका मूल अन्ध-श्रद्धा न होकर ज्ञानमय श्रद्धा, विवेक और बुद्धि आदि है, उसका मूल अधर्म नहीं बल्कि धर्म है, आत्मविश्वास है। प्र० : आप सिर्फ महात्मा है या महात्मा होनेके साथ-साथ राजनीतिज्ञ भी है ? उ०. मेरे विचारसे जो महात्मा है उसे राजनीतिज्ञ भी अवश्य होना चाहिए। राजनीतिज्ञ वह है जो राज्य -जनता की रक्षा व सेवा कर सके। कोई आत्मा उसी हदतक 'महान् ' है जिस हदतक वह जन-समाजकी दास बन चुकी है। [गुजरातीसे] नवजीवन, १५-५-१९२१ - । &