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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तार भेजनेवालों से

फौरी तार भेजनेवाले बहुतसे दोस्त अपने तारोंके जवाब न पाकर मुझे जरूर अशिष्ट समझते होंगे। लेकिन हकीकत यह है कि अहमदाबादके तार-विभागको शायद ऐसी हिदायत दे दी गई है कि मेरे तार देर करके भेजे जायें। सरकारी अधिकारी अगर चाहें तो मेरे काममें इस तरहके रोड़े अटका सकते हैं; उन्हें यह हक हासिल है। ऐसी सूरत में जो सार्वजनिक महकमे सरकारके कब्जे में हैं उनका इस्तेमाल किये बगैर स्वतन्त्र रूपसे अपना आन्दोलन चलानेकी सामर्थ्य हममें होनी चाहिए। मैं अपने तार भेजनेवालों को यही सलाह दूंगा कि वे तार भेजनेमें पैसा बर्बाद न करें; जबतक सर- कार मेरी डाकपर ऐसी कोई रोक नहीं लगाती और मेरे नामकी चिट्ठी-पत्री मुझे बराबर मिलती रहती है तबतक तो मेरे साथ सारा पत्र-व्यवहार डाकके जरिये ही किया जाना चाहिए।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १८-५-१९२१

५२. हमारे पड़ोसी

एण्ड्रयूज साहबने पूछा है, “क्या ‘अफगानी हमलेका हौआ’[१] शीर्षक मेरा लेख अफगानोंको भारतीय सीमापर हमला करनेका न्यौता नहीं है और क्या मैं इस तरह हिंसा में प्रत्यक्ष भागीदार नहीं हो जाता?” उक्त लेख भारतीयों और भारत सर कारके लिए लिखा गया था। अफगान इतने बेवकूफ नहीं हैं, कमसे कम मैं तो नहीं समझता, कि महज़ मेरा लेख पढ़कर वे भारतपर हमला कर देंगे। मगर मैं मंजूर करता हूँ कि एण्ड्रयूज साहबने जिस अर्थकी ओर इशारा किया है उस तरहका अर्थ भी मेरे उस लेख से निकाला जा सकता है। इसीलिए मैं सभीको बता देना चाहता हूँ कि अफगान या दूसरे कोई भी हमारी मदद के लिए आयें, यह मैं कतई नहीं चाहता; उलटे मैं तो हृदयसे यही चाहता हूँ कि वे हमारी मदद के लिए कदापि न आयें। हिन्दुस्तान बगैर किसी बाहरी मदद के अकेला ही सरकारसे निपट सकता है। इसका मुझे पूरा-पूरा विश्वास है। मैं तो यह दिखा देना चाहता हूँ कि सिर्फ अहिंसात्मक उपायोंसे हम अपना ध्येय प्राप्त कर सकते हैं। और इसीलिए अफगानोंको भारतीय सीमासे दूर रखने में मैं अपनी पूरी ताकत लगा दूंगा। लेकिन साथ ही यह भी सच है कि अफगानोंको भारतीय सीमासे दूर रखनेके इस काम में मैं सिपाहियों या पैसोंसे सरकारकी कोई मदद नहीं करूँगा।

मैंने अपने उस लेख में अपनी स्थितिको यथासम्भव स्पष्ट कर दिया था। मौजूदा सरकारको मैं बिलकुल ही नाकाबिले बरदाश्त और हिन्दुस्तान के पौरुष के लिए एक

  1. देखिए पृष्ठ ५८-६०।