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टिप्पणियाँ


सौवीं मंजिलपर रहता हो तो इस दलीलमें कुछ सचाई हो सकती है लेकिन सेठ तो वहाँ ग्राहकके खर्चपर रहता है। सेठ वहाँ रहनेका खर्च लेता है और अपना लाभ भी लेता है। ऐसे व्यापारीके ग्राहकोंका दिवाला निकल जाये, वे भिखारी बन जायें तो इसमें आश्चर्यकी क्या बात है?

यह तो बहँगीमें गंगाजल ले जानेसे भी ज्यादा महँगा हुआ। गंगाजलकी बहँगी रामेश्वरमृतक जाती थी। एक लुटिया-भर गंगाजलका दाम देनेवाला ही जानता है कि वह गंगाजल महँगा था अथवा सस्ता।

शिमलेमें बहुत ज्यादा आबादी हो गई है। सारे घर भर गये हैं। महँगाई तो होगी ही। पानी भी दो-एक हजार फुट नीचेसे आता है। लोटा-भर पानी इस्तेमाल करते हुए भी शरम आती है। जहाँ हम रहते हैं वहाँ पानी तो मिल जाता है पर हमें दिन भर ही उसकी जरूरत पड़ती है इसलिए पानी भरनेवाले को बहुत श्रम उठाना पड़ता है। शिमलेके आसपास झरने नहीं हैं। स्वराज्य प्राप्त करनेका अर्थ यह हुआ कि सरकारको पाँच सौवीं मंजिलसे नीचे जमीनपर लाना और अपने तथा उसके बीच स्वाभाविकता पैदा करना — फिर भले ही वह ब्रिटिश सरकार हो अथवा देशी। भेद काले-गोरेका नहीं है, भेद ऊँच-नीचका है। ब्राह्मण वह है जो भंगी की सेवा करे, वह नहीं जो भंगीके कन्धोंपर सवारी करे। जो जनता और अपने बीच पाँच सौ मंजिलोंका अन्तर रखता है वह राजा नहीं है। कर्मोसे हम सुखी अथवा दुःखी, राजा अथवा रंक होकर जन्म लेते हैं। सुखी पुरुषार्थं करके दुखियोंके दुःखको टालता है, राजा पुरुषार्थ करके रंकको अपने समान बनानेका प्रयत्न करता है अर्थात् स्वयं राजा होते हुए भी जान-बूझकर रंक बनता है। ईश्वर दासानुदास बनकर ऐश्वर्य प्राप्त करता है, पतितको पावन करके स्वयं पूजनीय बनता है। शिमलामें मुझे ठीक इसका उलटा दिखाई दिया और मेरा हृदय से उठा।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, २२-५-१९२१

६१. टिप्पणियाँ

नये वाइसराय

मैं पण्डितजीके अनुरोधपर शिमला गया। उनकी तबीयत ठीक न होने की वजहसे मैं जहाँ हूँ वहाँ आनेकी बजाय उन्होंने मुझे बुलाया। मैं उन्हें अपने पास कैसे आने देता? मैं शिमला गया। वहाँ पंडितजीने मुझे बताया कि वाइसराय महोदय मुझसे मिलना चाहते हैं। मैंने वाइसराय महोदयको लिखा कि यदि उनकी मुझसे मिलनेकी इच्छा है तो उनसे मिलने आने और मुझे जो कुछ कहना है उसे कह सुनानेमें खुशी होगी। उन्होंने मुझे समय लिख भेजा। हमारी मुलाकात लम्बी चली। वाइसराय महोदयने अत्यन्त धैर्यसे, अत्यन्त विनय और ध्यानसे मेरी पूरी बात सुनी। उन्हें जो कहना था सो मैंने सम्मानपूर्वक सुना। हम दोनों परस्पर एक-दूसरेसे कुछ परिचित हो गये।