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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


इस बातचीत के परिणामको मैं नहीं जानता, और जानता भी हूँ। हमें जो चाहिए वह देना उनके वशकी बात नहीं है। यदि वे अच्छे हों, सच्चे हों और हमारी बात को समझ लें तो वे हमारे एक मददगार मित्र साबित हो सकते हैं। बाकी हमें जो कुछ लेना है सो तो हमारे ही हाथ में है। हममें प्राप्त करनेकी शक्ति होनी चाहिए। यदि लेनेवाला हो तो देनेवाला मिल ही जाता है। सागरके पास प्याला लेकर जानेवाला अगर घड़ाभर पानी न मिलनेकी शिकायत करे तो उसका क्या अर्थ हो सकता है?

इसलिए स्वराज्य लेनेकी, खिलाफत और पंजाबका न्याय प्राप्त करनेकी शक्ति हममें आनी चाहिए। वह अभी नहीं आई है; हाँ, आती जाती है। हमारे मार्ग में मालेगाँव-जैसे विघ्न पड़े हुए हैं। अपने आलस्य के कारण हम निर्धारित वस्तुको प्राप्त नहीं कर पाते और खीज दूसरोंपर उतारते हैं। सारी खीज अपने ऊपर ही उतारना असहयोगका एक लक्षण है।

साथियोंसे

माननीय वाइसराय महोदयसे मुलाकात करनेके बाद मैं साथियोंसे इतना तो कह सकता हूँ कि उन्हें आलस्य, कोरी बातें, तमाशा और भाषण आदिको छोड़कर अपने-अपने कार्यों में लग जाना चाहिए।

हमारे सम्मुख पाँच कार्य हैं : (१) अस्पृश्यता-निषेध; (२) मद्य-निषेध; (३) कांग्रेस के सदस्य बनाना; (४) तिलक स्वराज्य कोषके लिए चन्दा उगाहना; और (५) [ घर-घरमें ] चरखेका प्रचार करना।

इनमें से एक भी कार्यके लिए भाषणकी जरूरत नहीं है।

अस्पृश्यताको मिटानेके लिए हमें भंगी आदिकी सेवा करनी चाहिए, उनके घर जाना और उनकी स्थिति में सुधार करना चाहिए।

मद्य-निषेद्यके लिए शराबकी दुकानोंके आगे खड़े होकर जानेवालों को विनयपूर्वक सावधान करना चाहिए और अगर वे इतने पर भी जाना चाहें तो उन्हें जाने देना चाहिए। हर बिरादरीको मद्यपानके विरुद्ध प्रस्ताव पास करना चाहिए और उसको भंग करनेवाले व्यक्तिका बहिष्कार करना चाहिए।

बहिष्कार अर्थात धोबी, नाई आदिको बन्द करना नहीं। बहिष्कारका अर्थ तो यह है कि उसके यहाँ पानी न पियें, उससे विवाह सम्बन्ध न रखें, उसके यहाँ खाने-पीनेका व्यवहार न रखें। बहिष्कार दो तरहका है, एक सभ्य और दूसरा असभ्य। सभ्य बहिष्कारका मूल प्रेम है, असभ्यका मूल तिरस्कार है। शान्तिमय असह्योगमें असभ्य बहिष्कार हराम है, त्याज्य है। सभ्य बहिष्कारमें सेवा स्वीकार न करने, साथ न देनेका भाव है। असभ्य बहिष्कार में दण्ड देनेका, दुःख देनेका भाव है। शराब पीनेवालेको हमें दण्ड न देकर उसका साथ त्यागकर अपना दुःख प्रदर्शित करना है। साथ त्याग करनेका अर्थ हुआ पानी और रोटी-बेटीका व्यवहार छोड़ना लेकिन किसीकी सेवा बन्द करना निर्दयता है। कुँआ और तालाब सबके लिए हैं। हज्जाम, धोबी और