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कराची से प्रतिवाद


वे गवर्नर हैं जिन्होंने अभी-अभी सत्ताके मद में चूर होकर जनताकी तुलना नौकरोंसे और सरकारकी तुलना मालिकोंसे की थी और कहा था कि असहयोगियोंको वही करना चाहिए जो नौकरीसे असन्तुष्ट होनेपर नौकर करते हैं; यानी जैसे वे नौकरी छोड़ देते हैं उसी तरह असहयोगियोंको देश छोड़कर चले जाना चाहिए। कहा जाता है कि सिन्धके प्रमुख “सहयोगी” नेताओंकी एक सभामें यह कहा गया था। उनकी अच्छाईका एक ताजा सबूत है हमारे स्वामी गोविन्दानन्दपर मुकदमा चलाने की मंजूरी देना, जिसके कारण बादमें उनको पाँच वर्षकी कैद हुई। अब हम अत्यन्त सम्मानपूर्वक आपसे पूछते हैं कि महोदय यह बतलाइये ऐसे गवर्नरकी कराची यात्राके समय उनको यह दिखलानेके लिए हड़ताल करनेमें कौनसा घोर अपराध हो गया कि हम सिन्धके लोग अब पहले जैसे बेजुबान मवेशी नहीं रहे जिनको विलिंगडनके इशारेपर लॉरेंसन कभी छल बलसे डरा-धमका दिया था। लोग दिलसे उस प्रदर्शनके पीछे थे, यह इसीसे सिद्ध है कि हड़ताल मुकम्मिल थी, ६ और १३ तारीखकी राष्ट्रव्यापी बड़ी-बड़ी हड़तालोंसे भी ज्यादा मुकम्मल।

कराची
८ मई, १९२१

आपका,
गिरधारीलाल खूबचन्दानी

मैं बड़ी खुशीसे उपर्युक्त पत्र छाप रहा हूँ। उसमें से सिर्फ वे हिस्से छोड़े गये हैं जिनमें बातको बढ़ा-चढ़ाकर कहा गया था। अगर मेरे द्वारा किसी स्कूलके प्रति अन्याय हो गया हो तो उसके लिए मुझे खेद है। सार्वजनिक संस्थाओंके खिलाफ प्रामाणिक और सच्ची शिकायतें प्रकाशित करना मेरा कर्त्तव्य है। किसी भी भ्रामक कथनसे ईमानदार राष्ट्रीय संस्थानोंका कुछ भी नहीं बिगड़ सकता। जहाँतक बम्बईके गवर्नर साहबका सवाल है, मैंने अपनी राय जाहिर की थी। मेरा अब भी यही खयाल है कि गवर्नर साहब बहादुरको सिन्धके हाकिमोंकी धाँधलीकी कोई जानकारी नहीं है। लेकिन सरकारपर जो आरोप लगाया गया है अगर वह साबित हो भी जाये तो भी मैं इस बात के लिए राजी नहीं कि जब भी कोई बदनाम अफसर कहींका दौरा करे तो हर बार हमें हड़ताल करनी ही चाहिए। गवर्नर साहबके बारेमें जो बात कही गई है, अगर सचमुच उन्होंने वैसा कहा है तो यह बड़े ही दुःखकी बात है। मेरा ऐसा विश्वास रहा है कि बम्बईके गवर्नर बहादुर गम्भीर और चतुर व्यक्ति हैं, इसलिए जल्दबाजीमें कोई अविचारपूर्ण बात कह जानेकी जो शिकायत उनके बारेमें की गई है उसके सच होनेसे मुझे जबरदस्त धक्का लगेगा।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २५-५-१९२१