पेश की है। महज वाहवाही लूटनेके लिए हमें जेल नहीं जाना है। यदि कोई ऋजुता को सींखचों में बन्द करे तो जेल मुक्ति और प्रतिष्ठाका सिंहद्वार बन जाता है। अली बन्धुओंका बयान हम सब लोगोंके लिए, जो सत्य और स्वतन्त्रताकी लड़ाई लड़ रहे हैं, इस बातकी चेतावनी है कि हमारी भाषा बिलकुल नपी-तुली और दुरुस्त होनी चाहिए। अच्छा तो यही होगा कि हम लिखित भाषण पढ़ें अथवा भाषण ही न दें। बहुत ही ऊँचे विचारोंके एक मुसलमान सज्जन हैं, जिन्होंने अपने-आपपर इस तरहकी बन्दिश लगा ली है। वे हैं मौलाना अब्दुल बारी साहब।[१] वे बड़े भावुक हैं और भाषण करते समय जोशमें आकर ऐसी भाषाका इस्तेमाल कर जाते हैं, अन्यथा जिसके उपयोग करने की बात वे कभी सोच भी नहीं सकते। इसलिए दोस्तोंके कहनेपर उन्होंने अपने लिए नियम बना लिया है कि किसी सार्वजनिक सभामें भाषण नहीं देंगे। इस शानदार मिसालका जिक्र मैं इसलिए कर रहा हूँ कि हम सब भी वैसा ही करें। अली बन्धुओंने अपने स्पष्टवादी, सीधे-सच्चे बयानसे हमें रास्ता दिखा दिया है। अच्छा तो यही होगा कि हम भाषण न दें; और देना ही पड़े तो हर शब्द तोल-तोलकर मुंहसे निकालें, ताकि कहीं कोई ऐसी बात न कह जायें जो हम कहना न चाहते हों और जिससे हमारे काम और हमारे आन्दोलनको नुकसान पहुँचे।
पारसियोंकी दानशीलताकी एक और मिसाल
दक्षिण आफ्रिका के श्री रुस्तमजी जीवनजी घोरखोदूने गुजरातके अकाल-ग्रस्त लोगों में चरखे बांटने के लिए तारसे बारह हजार रुपये मेरे पास भेजे हैं। पाठकोंको याद होगा कि इससे पहले मदरसोंके लिए वे चालीस हजार रुपयेका शानदार दान दे चुके हैं। यह बारह हजार रुपया ठीक मौकेपर आया है, क्योंकि अकाल-समितिको पैसोंकी बड़ी जरूरत थी। जो लोग तिलक स्वराज्य कोषमें राजनीतिक कारणोंसे चन्दा नहीं दे सकते, मैं उम्मीद करता हूँ कि वे श्री रुस्तमजीकी शानदार मिसालसे प्रेरणा लेंगे और बिना हिचकिचाहटके अकाल सुरक्षा कोषमें मदद करेंगे।
[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १-६-१९२१
- ↑ १८३८-१९२६; लखनऊके एक राष्ट्रवादी मुसलमान; जिन्होंने खिलाफत आन्दोलनमें प्रमुख भाग लिया और अपने अनुयाथियोंसे गो-हत्या न करनेका अनुरोध किया। १९२१ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अध्यक्ष।