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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


को इस बातका निमन्त्रण दिया गया है कि वह राष्ट्रके साथ राष्ट्रकी अपनी शर्तोपर सहयोग करे, जो कि हर राष्ट्रका अधिकार और हर सरकारका कर्त्तव्य है। असहयोग आन्दोलन राष्ट्रकी ओरसे इस बातकी पूर्व सूचना है कि वह अब और ज्यादा दिनोंतक दूसरोंके संरक्षणमें रहकर सन्तोष नहीं करेगा। हिन्दुस्तानने तलवार या मारकाटके अस्वाभाविक और अधार्मिक सिद्धान्त के स्थानपर असहयोग के निर्दोष, स्वाभाविक और धार्मिक सिद्धान्तको ग्रहण किया है। अगर हिन्दुस्तान कभी उस स्वराज्यको प्राप्त करेगा, जिसका स्वप्न रवीन्द्रबाबू देख रहे हैं, तो वह सिर्फ अहिंसापूर्ण असहयोग आन्दोलनके द्वारा ही प्राप्त करेगा। वे संसारको अपना शान्तिका सन्देश सुनायें और इस बातका भरोसा रखें कि हिन्दुस्तान अगर अपनी बातका धनी बना रहा तो अपने असहयोग द्वारा उनके सन्देशको अवश्य सच्चा साबित करेगा। रवीन्द्रबाबू जिस देशभक्तिके लिए उत्सुक हैं उसे असली रूप देनेके लिए ही यह आन्दोलन खड़ा किया गया है। यूरोपके पैरोंके नीचे पड़ा हुआ भारत संसारको कोई आशा नहीं बँधा सकता। स्वतन्त्र और जाग्रत भारत ही दुःखी संसारको शान्ति और सुखका सन्देशा सुना सकता है। असहयोग आन्दोलन एक ऐसा मंच तैयार करनेके लिए ही चलाया गया है जिसपर खड़े होकर भारत अपना सन्देश सारे संसारको सुना सके।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १-६-१९२१

८१. खिलाफत और अहिंसा

‘सवेंट ऑफ इंडिया’ के श्री वाज़ने अपने साप्ताहिक पत्रके पिछली ५ मईके अंकमें प्रकाशित श्री जकरियाके एक लेखकी ओर मेरा ध्यान आकर्षित करते हुए मुझसे कहा है कि मैं उस लेखकके दृष्टिकोणसे खिलाफत के सवालपर विचार करूँ। श्री जकरियाने अपने उस विस्तृत लेखमें प्रश्नको इस तरह पेश किया है:

अहिंसा सिद्धान्तका कोई भी प्रचारक अहिंसा के सर्वथा विरोधी खिला- फतके सिद्धान्तका समर्थन कैसे कर सकता है? मुझे इस बातसे कतई मतलब नहीं कि खिलाफत के या अहिंसा के सिद्धान्त में कितनी सच्चाई है । पर मैं तो यह कहता हूँ कि ये दोनों एक-दूसरेका खण्डन करते हैं; और में अगर पूरी ईमानदारीसे कुछ चाहता हूँ तो सिर्फ यही कि सभी पक्ष इस समस्या के बारेमें अपने विचार स्पष्ट रखें। मानवताको हालमें जिस विपत्तिका सामना करना पड़ा है उसका सबसे बड़ा कारण यही अस्पष्ट और उलझी हुई विचार-पद्धति और उसके फलस्वरूप सिद्धान्तोंके साथ समझौते करनेकी प्रवृत्ति ही है।

आगे लेखकने भूतपूर्व प्रेसीडेंट विल्सनके पतनका उदाहरण पेश करते हुए कहा है:

क्या पूर्वी जगत्का महान् सत्याग्रही इस चेतावनीपर कान देगा? क्या वह अपने समूचे जीवनके सिद्धान्तके प्रति सच्चा रहेगा? क्या वह अपने