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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


अस्वीकार्य सुझाव देनेवाले लोग भी इतना तो जानते ही हैं कि अधिकतर सजाएँ अश्रद्धा फैलाने या भाषण न करनेकी जमानत देनेसे इनकार करनेपर ही दी गई हैं। वर्तमान सरकारके प्रति अश्रद्धा फैलाना, देशको सविनय अवज्ञाके लिए तैयार करना और ऊपर बताये हुए ढंगकी जमानतें देनेसे इनकार करना हर असहयोगीका कर्त्तव्य है। अली बन्धुओंने ऐसा कोई वचन नहीं दिया है कि वे अश्रद्धा नहीं फैलायेंगे या देशको सविनय अवज्ञाके लिए तैयार नहीं करेंगे। इसलिए अगर सरकार हिंसाके उकसावेको ही दण्डनीय अपराध मानती है तो उसे इधर हालमें गिरफ्तार किये हुए करीब-करीब सभी राजबन्दियोंको, उनसे कोई भी वचन लिये बिना, बिना शर्त रिहा कर देना चाहिए। जहाँतक असहयोगियोंका सवाल है उन्हें इस मामलेमें सर्वथा उदासीन रहना चाहिए। उनमें से अधिकांशको जेलकी जिन्दगीको ही सामान्य जिन्दगी समझना चाहिए। बहुत-से लोग वचन देकर छूटनेके बदले खुशी-खुशी जेल जा रहे हैं। उन सबके नाम पढ़कर मुझे बड़ी प्रसन्नता होती है। अपना प्रण न टूटे इसकी पूरी सावधानी बरतते हुए, असहयोगीको चाहिए कि वह किसीको किसी भी तरह्का वचन न दे।

विध्वंसात्मक कार्यक्रम

‘लीडर’ अखबारने इस कार्यक्रमका सारा श्रेय मुझे अनायास ही दे डाला है और साथ ही यह कहकर मेरी हँसी उड़ाई है कि मैंने देशको असहयोगका विध्वंसात्मक पक्ष अपनानेकी सलाह दी है। उस अखबारके एक संवाददाताने तो मुझसे अनुरोध भी किया है कि कार्यक्रमके विध्वंसात्मक भागको मुझे वापस ले ही लेना चाहिए। सबसे पहले तो मैं ‘लीडर’ और उसके संवाददाताको यह बता देना अपना फर्ज समझता हूँ कि अगर मैं चाहूँ तब भी ऐसा नहीं कर सकता। वह अधिकार तो सिर्फ कांग्रेस और केन्द्रीय खिलाफत समितिको ही है। और कार्यक्रमके विध्वंसात्मक अंशमें मेरा सतत विश्वास होनेके कारण, अगर कांग्रेस और केन्द्रीय खिलाफत समितिने कभी उसे वापस ले भी लिया तो भी मैं उसपर अमल करना बन्द नहीं कर सकूँगा। अहिंसामें उनका सम्पूर्ण विश्वास नहीं भी हो सकता, एक संस्थाका तो नहीं ही है। लेकिन मेरे निकट तो अहिंसा ही सारी बीमारियोंका एकमात्र और रामबाण इलाज है। इसलिए मैं न तो वकीलोंको फिरसे वकालत शुरू करनेकी सलाह दे सकता हूँ और न विद्यार्थियोंको सरकारी स्कूलोंमें लौट जानेकी; और न ही मैं वकीलों तथा सरकारी स्कूल-कालेजोंके विद्यार्थियोंसे कांग्रेसके तत्त्वावधानमें, जबतक वह असह्योग पर आमादा है, सरकारी पद ग्रहण करनेकी बात ही कह सकता हूँ।

असहयोगके प्रथम चरणमें विध्वंसात्मक अंशके मौखिक प्रचारका काम पूरा हो चुका है। खिताबों, अदालतों, स्कूलों और कौंसिलोंके सम्बन्धमें हमें अपनी ठीक-ठीक स्थिति मालूम हो गई है। और मेरे खयालसे असहयोगियोंको इस बातका सन्तोष है कि इन संस्थाओंकी अब वह पहलेवाली धाक और प्रतिष्ठा नहीं रही। विरोधियोंको जरूर इस बातकी खुशी हो सकती है कि लोगोंने बहुत बड़ी संख्यामें इसमें हिस्सा नहीं लिया। फिर भी जिन लोगोंने इस आह्वानको सुना वे संख्यामें भले ही बहुत नहीं हैं