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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


उन्होंने वैसा करने से इनकार कर दिया जिसके फलस्वरूप अदालतने उनपर दो सौ रुपये जुर्माना किया और एक घंटे के लिए अदालतसे बाहर भेज दिया। एक घंटे बाद वे फिर उसी निर्दोष टोपीको पहनकर अदालतमें आये, जिसपर उन्हें फिरसे टोपी उतार देनेका आदेश हुआ और उन्होंने फिर वैसा करनेसे इनकार कर दिया और उनपर फिर दो सौ रुपये जुर्माना किया गया। तब मजिस्ट्रेटने उन्हें दूसरे मजिस्ट्रेटके सामने जानेका हुक्म दिया। जहाँ इतना अन्धेर चल सकता है वहाँ वकील वकालत करनेके लिए तैयार हैं! लेकिन वकील चाहे जो करें, इतना जाननेके बाद भी अगर लोग विदेशी टोपीसे चिपके रहे तो इसके समान शर्मकी और क्या बात हो सकती है? निर्दोषको जब ऐसे दोषी करार दिया जाता है तब समझना चाहिए कि स्वराज्य की नौबत बजने लगी है। लेकिन निर्दोषको जब ऐसे दोषी ठहराया जाता है और जब लोग इससे डरने लगते हैं तो गुलामीकी जंजीरें और भी जोरसे झनझनाने लगती हैं। मैंने पुराने कैदियोंको अपनी बेड़ियाँ साफ करते समय उनकी झनझनाहटसे खुश होते हुए देखा है। असहयोगीपर जैसे-जैसे अत्याचार होता जाये वैसे-वैसे हमें असहयोग- को और भी बढ़ाना चाहिए, हमारे पास गुलामीके बन्धनको तोड़नेका यही एकमात्र रास्ता है। अगर बीजापुरकी सभी अदालतोंमें सभी सफेद टोपी पहने हुए दिखाई दें तो मजिस्ट्रेट किसपर जुर्माना करेगा और कैसे वसूल करेगा?

गुजरात परिषद्

इस परिषद् के विषयमें भी मुझे संक्षेपमें ही लिखना होगा। इस परिषद्‌को आगामी कांग्रेसकी तैयारी के रूप में लेना चाहिए और इस दृष्टिसे परिषद्ने सराहनीय कार्य किया है।

परिषद्की सजावट सादी और अधिकांशतया स्वदेशी सामग्रीसे की गई थी। परिषमें भूमिपर ही बैठने का पूरा इन्तजाम किया गया था। प्रमुख नेता और कुछ अन्य लोग मंचपर गद्दियोंपर बैठे थे; झण्डियाँ अधिकतर खादीकी थीं। स्वराज्यका झण्डा मंडपके प्रवेश स्थलपर फहरा रहा था। लोग शोरगुल नहीं मचा रहे थे। जगहकी कोई तंगी न थी। स्त्रियोंके लिए बैठने का बहुत अच्छा प्रबन्ध किया गया था। स्वागत समितिके प्रमुखका भाषण संक्षिप्त और सुन्दर गुजरातीमें था। उन्होंने अपना भाषण पढ़ने में सिर्फ पन्द्रह् मिनट लिये। अध्यक्षका भाषण भी संक्षिप्त, सादा और विनययुक्त था। वह जितना विवेकपूर्ण था उतना ही उत्साहसे भरा हुआ भी था। लेकिन हम बहुधा यह मानकर चलते हैं कि हिम्मत अथवा शौर्य के साथ तीखे और कटु विशेषणोंका होना लाजिमी है। श्री वल्लभभाई पटेलने बता दिया है कि शुद्ध बलके साथ तो शुद्ध सभ्यता ही हो सकती है। उन्हें अपना भाषण पढ़ने में कुल तीस मिनट लगे। इस तरह इन दोनों और अधिकांश भाषणोंके संक्षिप्त होनेके कारण जनताका समय बच गया, किसीको थकावट महसूस न हुई और दो दिनोंमें काफी काम हो सका। परिषद्की बैठक सबेरे और साँझको रखी गई थी, इस योजनासे लोग धूपसे बच गये। हमें सबेरे सभाओंका आयोजन करने के रिवाजको अधिक लोकप्रिय बनानेकी जरूरत है। विशेष रूपसे गर्मियोंके दिनोंमें तो सभाएँ सुबह-सुबह ही बुलाई जानी चाहिए।