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बहनों से


स्त्रियोंने अपनी उदारता के वशीभूत हो सैकड़ों तरह के अन्धविश्वास और ढोंगको भी प्रश्रय दिया है। वही स्त्रियाँ जब राष्ट्रकार्यके मर्मको समझ जायेंगी तो शेष क्या रह जायेगा? फिर तो राष्ट्रका खजाना खाली नहीं रहना चाहिए।

स्त्रियाँ स्वर्गीय लोकमान्य तिलकके नामसे अपरिचित नहीं हैं। उनकी स्मृति उन्हें कोई कम प्रिय नहीं है। उनके चारित्र्य बलसे हिन्दुस्तान दीप्त हो रहा है। उनके आत्मत्यागसे हिन्दुस्तान स्पन्दित हो रहा है। उनकी स्मृतिको चिरस्थायी बनाने तथा स्वराज्यकी स्थापना करने के लिए गुजरातको दस लाख रुपया चन्दा देना है। इस कोष में बहनें रुपया और आभूषण दे सकती हैं। आज बहनें आभूषणोंका क्या उपयोग करेंगी? जब हिन्दुस्तान के करोड़ों व्यक्तियोंको भरपेट खाना नहीं मिलता, जब हिन्दुस्तान में अत्याचारका बोलबाला है तब बहनें आभूषण कैसे पहन सकती हैं? अशोक वाटिका में सीताजी क्या आभूषण पहनती थीं? दमयन्ती जब वनमें विलाप करती फिर रही थी तब क्या उसके अंगपर आभूषण थे? तारामती जब हरिश्चन्द्र के साथ भटक रही थी तब क्या वह हीरे-मोती के हार पहने हुए थी? अधर्मके इस युगमें आभूषण पहनना मुझे तो अनुचित जान पड़ता है।

जो बहनें यह सोचकर अपने आभूषणोंको सँजोकर रखती हैं कि दुःखके समय वे काम आयेंगे तो उनसे मैं इतना ही कहूँगा कि यदि आप ईश्वरपर विश्वास रखती हैं तो आभूषणोंकी अपेक्षा वह विश्वास आपके अधिक काम आयेगा। याद रखें कि हिन्दुस्तान में करोड़ों स्त्रियाँ ऐसी हैं जिनके पास एक हलकी-सी अँगूठी भी नहीं है और जिनके सिरपर आकाश और नीचे धरती ही है। उन्हें भी ईश्वर खानेको दे रहा है। आप भी अगर परिश्रम करने में न शरमायें तो आपके पवित्र हाथ-पैर आभूषणोंकी अपेक्षा आपको अधिक प्रतिफल देंगे। भगवान् ने जिसे दाँत दिये हैं वह उसे दाने भी देगा। मेहनती और ईमानदार व्यक्तिको आजतक भूखा नहीं मरना पड़ा है। आलसीको ही आभूषणोंपर निर्भर रहना पड़ता है। बहनें आलस्य छोड़ें और गहनोंका भी त्याग करें।

बहनें जो पैसा देंगी उसका उपयोग ही आभूषणोंकी आवश्यकताकी पूर्ति करेगा, क्योंकि वह पैसा गरीब बहनोंको चरखा दिलाने और हमारे बच्चोंको अच्छी शिक्षा देने में खर्च होगा। तात्पर्य यह कि बहनें जो पैसा अथवा आभूषण दान देंगी उसका लाभ वस्तुतः उन्हें ही मिलेगा। जो व्यक्ति अपनी कमाई अपने पास रखकर अपने ऐश-आराम के लिए उसका उपयोग करता है वह व्यक्ति कुटुम्बघाती माना जाता है, स्वार्थी कहलाता है। जो अपनी कमाई परिवारकी गोलकमें डालता है वह भी अपनी कमाईका उतना ही उपयोग कर सकता है जितना कि पहला व्यक्ति करता है तथापि वह कुटुम्बका सेवक माना जाता है, निस्स्वार्थी समझा जाता है। देश-सेवाका अर्थ है देशको अपना कुटुम्ब समझना। देशकी गोलकमें हम जो पैसा डालेंगे उसका हमें पूरा लाभ मिलेगा । जिस तरह हमारे पैसेका लाभ औरोंको मिलता है वैसे ही औरोंके पैसेका लाभ हमें मिलता है। इस तरह जो बहनें पैसे अथवा आभूषण देंगी वे कुछ भी नहीं खोयेंगी।

बहनें अपने परिवार और पतिको भी इस कार्यकी ओर प्रेरित कर सकती हैं। अनेक बार स्त्रियोंके खर्च के कारण पुरुष जितना चाहते हैं उतना देशको नहीं दे पाते।