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काम यह है कि उन्होंने पंजाबमें अपने कार्योंके लिए विख्यात श्री टॉमसनको और भी बड़ा पद दिया और उसे मंजूर फरमानेके लिए उन्हें राजी कर लिया। सर जॉर्ज लॉयडको जहाँ खुद देख-भाल करनी होती है, वहाँ वे आम तौरपर चतुराई और विनम्रतासे पेश आते हैं। लॉर्ड रीडिंग, जैसा कि अभी ऊपर बताया, उस तरह दिलासा देनेका काम कर सकते हैं। लेकिन चूंकि सिन्धका कमिश्नर उनकी परवाह नहीं करता और अपने-आपको उनसे कम नहीं समझता इसलिए सर जॉर्ज लॉयड इस्तीफा तो नहीं देंगे। न लॉर्ड रीडिंग ही इस बातपर इस्तीफा देंगे कि हाकिम लोग न्याय करनेके उनके इरादोंका मखौल उड़ाते हैं। दोनों ही पूरी ईमानदारीसे ऐसा सोचते हैं कि उनके बगैर तो हालतें और भी खराब हो जायेंगी। असहयोग आन्दोलन यही दिखाने के लिए आया है कि बुराईसे सम्बन्ध रखकर कोई अच्छा काम नहीं कर सकता। जब बुनियाद ही बुरी हो तो उसपर बनाये अच्छाईके महलसे फायदा कुछ भी नहीं होता, उलटे बुराईका जोर ही बढ़ता है। असफलता के लिए ऐसे अच्छे हाकिमोंको दोष देना बेकार है, क्योंकि भलाई करनेके अपने नेक इरादोंके बावजूद वे ऐसा नहीं कर पाते और असफल हो जाते हैं। सभी हाकिम बुरे नहीं हैं, इसलिए अगर हम हुकूमत और हाकिमोंमें, इस तन्त्र और उसके प्रशासकोंमें इसी तरह फर्क करें तो हमारा असहयोग इस तन्त्रमें गहराईतक पैठी हुई बुराइयोंके प्रति उनकी आँखें खोल देगा।

मगर प्रशासकोंके गुण, दोषोंके बारेमें इस सारी सैद्धान्तिक बहससे सिन्धकी तकलीफोंमें तो कोई कमी होती नहीं। आजकी बुरी हालतोंमें वे जो बहादुरी और धैर्य दिखा रहे हैं उसके लिए मैं उन्हें बधाई देता हूँ। अगर वे धीरज और बहादुरीसे डटे रहे तो यह बेलगाम और विवेकहीन दमन उलटे हमारे लिए ही अपने लक्ष्यतक पहुँचने में सहायक सिद्ध होगा। सारे कष्टोंको धीरजके साथ सहकर हमें अपने गुमराह भाइयोंका मन जीतना चाहिए जो आसानीसे अविचारी अफसरोंके हाथकी कठपुतली बन जाते हैं। भारतके दूसरे हिस्सोंकी तरह सिन्धके ग्रामीण भी जल्दी ही अफसरोंसे डरना छोड़ देंगे और कांग्रेस तथा खिलाफतके कार्यकर्त्ताओंको अपना सच्चा दोस्त और मुक्तिदाता समझकर उनका स्वागत करने लगेंगे। अगर हममें आस्था है तो शीघ्र ही मुसलमानोंको हिन्दुओंके और हिन्दुओंको मुसलमानोंके खिलाफ भड़काना नामुमकिन हो जायेगा।

मन्दिरों में खादी

विदेशी कपड़ा हमारी जिन्दगीमें इस तरह छा गया है कि पवित्र कार्यों में भी हम उसीका इस्तेमाल करते हैं। पुरी, अयोध्या और दूसरी जगहके जिन मन्दिरोंमें भी मैं गया, करीब-करीब सर्वत्र देव-मूर्तियोंको विदेशी कपड़ेमें सजा हुआ पाया। यहाँतक कि जनेऊ भी हमेशा हाथ-कते सूतसे नहीं बनाया जाता। ऐसी स्थितिमें जब संवाददाता से यह समाचार मिला कि गुजरात विद्यापीठके आचार्य गिडवानीने[१] अपनी हालकी सिन्ध यात्रामें ‘ग्रन्थ साहब’ के लिए विदेशी रेशमके बदले खादीका वेष्टन पेश किया तो

२०-१५

  1. चोइथराम गिडवानी।