पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/२५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२२६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


मुझे बहुत अच्छा लगा। गिडवानी साहब इस तरहकी तारीफके लायक मिसाल पेश करनेवाले पहले शख्स हैं। और मुझे उम्मीद है कि दूसरे भक्त भी उनका अनुकरण करेंगे और मन्दिरोंमें खादी विदेशी कपड़ेकी जगह लेगी।

माता-पिताका कर्त्तव्य

इस साल २१ बरसके मेरे तीसरे बेटेने ऑनर्सके साथ बी० ए०का इम्तहान पास किया। उसकी पढ़ाईपर बहुत ज्यादा खर्च हुआ। लेकिन वह सरकारी नौकरी नहीं करना चाहता, सिर्फ देशकी सेवा करना चाहता है। मेरे परिवारमें बारह आदमी हैं। पाँच लड़कोंकी पढ़ाई अभी बाकी है। कुछ जायदाद थी, जिसे कर्ज चुकानेके लिए दो हजार रुपये में बेच देना पड़ा। अपने तीन बेटोंकी पढ़ाईपर मैंने अपनी जिन्दगीकी सारी कमाई खर्च कर दी। मुझे उम्मीद थी कि तीसरा बेटा युनिर्वासटीकी ऊँची-ऊँची डिग्री हासिल करके मेरी खोई हुई श्री सम्पदाको वापस ला देने की कोशिश करेगा; मैंने उम्मीद लगा रखी थी कि वह पढ़-लिखकर घरका सारा भार खुद उठा लेगा। लेकिन अब तो ऐसा लगता है कि समूचा परिवार ही तबाह हो जायेगा। एक तरफ कर्तव्य है और दूसरी तरफ मनकी अभिलाषाएँ; और दोनोंमें द्वन्द्व छिड़ा हुआ है। में इस मामले में आपकी राय और सलाह चाहता हूँ।

यह पत्र केवल एक नमूना है; शिक्षाकी यह हालत आम है। इसी रवैये के कारण मैं कुछ वर्षों पूर्व शिक्षा के मौजूदा ढंगके खिलाफ हो गया था और अपने तथा गैरोंके लड़कोंकी पढ़ाई-लिखाईके ढंगमें मैंने कुछ परिवर्तन कर दिये, और (मेरी रायमें) इनका नतीजा बहुत अच्छा निकला। हैसियत और रुतबेकी दौड़ में बहुतसे परिवार तबाह हो गये और बहुतसे सादगी और सदाचार के रास्तेसे भटक गये हैं। सभी जानते हैं कि अपने बच्चोंकी पढ़ाई-लिखाईके लिए पैसा जुटानेमें उनके अभिभावकोंने कौनसे सुकर्म-कुकर्म करना अपना फर्ज नहीं माना है। मुझे तो यकीन हो गया है कि अगर हमने शिक्षाका सारा तरीका नहीं बदला तो हमारी हालत और भी ज्यादा खराब हो जायेगी। बच्चोंकी शिक्षा के मामलेमें हमने अभीतक जो कुछ किया है, वह समुद्र में सिर्फ एक बूंदकी तरह है। ज्यादातर बच्चे अशिक्षित हैं, और इसकी वजह इच्छाकी कमी नहीं, माता-पिताओंका अज्ञान और अक्षमता ही है। जब माता-पिताको अपने बड़े-बड़े बच्चोंका भरण-पोषण करना पड़े, उन्हें भारी खर्चका बोझ उठाकर महँगी शिक्षा देनी पड़े और बदले में तत्काल कोई लाभ न मिले तो मानना पड़ेगा कि व्यवस्थामें कहीं-न-कहीं कोई गहरी बुराई घुसी हुई है। विशेषकर भारत-जैसे गरीब मुल्क में इन बातोंका होना तो और भी अनुचित है। बच्चे शुरूसे ही काम करके अपनी पढ़ाई-लिखाईका खर्च निकालने लगें, इसमें मुझे तो कोई बुराई दिखाई नहीं देती। कताई और उससे पहले धुनाई और पूनी बनाना आदि बेशक सभीके लिए उपयुक्त एक बहुत ही आसान हुनर है और आज सारे देशको उसकी जरूरत है। अगर हम इस हुनर को अपनी शिक्षण संस्थाओंमें जारी करते हैं तो एक साथ तीन बड़े काम हो