पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/२६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२३२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


सविनय अवज्ञाका मतलब सरकारके हुकूमत करनेके अधिकारको आचरणके द्वारा पूरी तरह नामंजूर करना है, इसकी इजाजत तभी दी जा सकती है जब सरकार इतनी भ्रष्ट हो जाये कि उसे किसी भी तरह सुधारा न जा सके। मेरी बेवकूफी ही सही, मगर हमारी इस सरकारको अपने कुकृत्यों और लोगोंको हिंसाके लिए भड़कानेका कोई पछतावा हो, इसका जरा-सा भी संकेत मुझे कहीं दिखाई नहीं देता। उलटे उसका इरादा हिंसाकी बिनापर डायरशाहीकी पुनरावृत्तिको उचित ठहरानेका लगता है। पंजाबके अन्याय के परिशोधनका केवल एक ही तरीका है और उस तरीकेसे उसका परिशोधन करनेसे इनकार करनेका मतलब यह है कि अमृतसरकी तरह लोगोंके क्रोधसे पागल हो उठनेपर उनके अपराधोंके लिए दोषी और निर्दोष दोनोंको समान रूपसे दण्डित किया जायेगा और इस तरह अमृतसरके उस एक अधिकारीके इस कथनको चरितार्थ किया जायेगा कि मौजूदा पीढ़ीके गुनाहोंकी सजा आनेवाली पीढ़ियोंको भुगतनी पड़ेगी।

जबरदस्तीसे लादा हुआ ब्रिटिश जुआ असहनीय भी है और अपमानजनक भी। यह जाति जो अपने आत्मसम्मानके प्रति सजग हो गई है कष्टोंकी भट्टीमें तपेगी और उसे तपना भी चाहिए। वह गुलामीके जुएको उतार फेंकनेके प्रयासके क्रममें जितनी भी तकलीफें आयें, बरदाश्त करेगी; बरदाश्त करनी ही चाहिए। अंग्रेज हिन्दुस्तान में सिर्फ बराबरीके रिश्तेपर और दोस्त बनकर ही रह सकते हैं। अगर वे सेवा करना चाहते हैं तो उन्हें अपने मालिकोंकी इच्छाओंका पूरी पाबन्दीसे पालन करनेवाले सच्चे सेवक बनना चाहिए। अंग्रेज पूँजीपतियोंको सुविधाएँ दी जायें और भारतीय मजदूरोंका शोषण हो, यह चल नहीं सकता। हममें से छोटेसे-छोटेके साथ भी उन्हें बराबरीका सलूक करना होगा। इस बातसे कोई इनकार नहीं करता कि उनकी संगठन करनेकी प्रतिभा, उनके अध्यवसाय और उनकी सूझबूझकी हमें जरूरत है। मगर उनकी बन्दूक और उनके कोड़ेका आतंक हमेशा-हमेशा के लिए खत्म हो जाना चाहिए। लेकिन पंजाबके अन्यायका परिशोधन करने और मुस्लिम जनमतको सन्तुष्ट करनेसे इनकार करते देखकर तो यही लगता है कि उस आतंकको मिटानेका उनका कोई इरादा नहीं है। ऐसे रवैयेसे हमारा कोई समझौता नहीं हो सकता। कमजोर हों या ताकतवर, इसकी परवाह किये बिना हमें तो अन्ततक लड़ना ही चाहिए, फिर चाहे जो भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े। इसलिए जैसे ही सविनय अवज्ञाके उपयुक्त निरापद वातावरण तैयार हो जाये, हमें उसे शुरू कर देना चाहिए। मगर तबतक ऐसे विवेकशून्य आदेशोंको भी, जैसा कि लाहौर के जिला मजिस्ट्रेटने दिया, सहते जाना होगा। अगर आज हम अपनी इच्छासे नियमों और आदेशों का पालन करते हैं तो कल निश्चय ही हममें अधिकारपूर्ण अवज्ञाकी शक्ति आयेगी।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १५-६-१९२१