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भाषण : घाटकोपरमें


हैं। बंगालके मेरे अनुयायी यदि वाइसरायसे मेरी मुलाकातसे नाखुश नहीं हैं तो इसका कारण यही है कि वे जानते हैं कि जबतक इन दोनों अन्यायोंका परिशोधन नहीं होता तबतक मैं कोई समझौता नहीं कर सकता, और वे यह भी जानते हैं कि स्वराज्यकी योजनाओंपर विचार-विनिमय करनेका समय तभी आ सकेगा जब समझौते की हर योजनाकी राहके ये दोनों रोड़े हटा दिये जायेंगे। यदि इन दोनों बाधाओंको दूर नहीं किया गया तो भारत के लिए पूर्ण स्वाधीनताके अलावा कोई चारा नहीं होगा। बारीसाल सम्मेलनमें भाग लेनेवाले बंगाली श्री पालकी चर्चासे इस कारण नाखुश हुए कि मेरे ख्यालसे वे समझते हैं कि अभी यह चर्चा छेड़नेका समय नहीं आया है और इससे स्वराज्यकी सही भावनाके विकास में बाधा पड़ेगी। श्री पालका काम उस कारीगरकी तरहका था जो इमारतकी पक्की नींव तैयार करनेसे पहले ही सबसे ऊपरकी मंजिल बनाना शुरू कर दे। श्री पालसे मेरा यह निवेदन है कि वे देशको स्वराज्यकी योजनाओं पर असामयिक चर्चामें न लगा दें और मेरा यह आश्वासन स्वीकार करें कि जहाँतक मेरा सम्बन्ध है जनता के प्रतिनिधियोंसे खुला परामर्श किये बिना स्वराज्यकी किसी भी योजना के बारेमें कोई कार्रवाई नहीं करूँगा । खिलाफत और पंजाबके बारेमें परामर्श करनेका तो कहीं प्रश्न ही नहीं है, क्योंकि उसके सम्बन्धमें न्यूनतम शर्तोंको तो भली प्रकार समझ-बूझ लिया गया है।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १५-६-१९२१

१०८. भाषण : घाटकोपर में[१]

१५ जून, १९२१

महात्मा गांधीने पहले घाटकोपरके निवासियोंको मानपत्रके लिए धन्यवाद दिया। उसके बाद उन्होंने कहा: मैं इन ४०,००० रुपयोंको जिन्हें आपने तिलक स्वराज्य कोषके लिए इकट्ठा किया है स्वीकार करता हूँ। किन्तु मेरा ऐसा करना एक शर्तके साथ है। यदि आपके द्वारा इकट्ठी की गई यह रकम यहाँके उन बहुतसे निवासियोंके, जो बम्बई में व्यापार करते हैं, अधिकतम प्रयत्नका फल है तब में तत्काल कहूँगा कि हमें स्वराज्य इस वर्ष कदापि नहीं मिल सकता। यदि आपने थोड़ा-सा भी त्याग किया

  1. बम्बईके इस उपनगरके नागरिकोंने एक समारोह में गांधीजीका स्वागत किया था। इस समारोहमें अन्य व्यक्तियोंके अलावा श्री वि० झ० पटेल, हकीम अजमलखाँ, सरोजिनी नायडू, डाक्टर मु० अ० अन्सारी, डाक्टर बी० एस० मुंजे, नृ० चि० केलकर, अली बन्धु, मौ० अब्दुल बारी, मौ० अबुल कलाम आजाद, जमनालाल बजाज और श्री शंकरलाल बैंकर भी उपस्थित थे, जो वहाँ कांग्रेस महासमितिकी बैठक में भाग लेनेके लिए आये हुए थे। घाटकोपरके व्यापारियोंकी ओरते तिलक स्वराज्य-कोषके लिए ४०,००० रुपयेकी थैली भेंट की गई थी। सभामें गांधीजी शौकत अलीके भाषणके बाद बोले थे। गांधीजीके भाषणका विवरण २०-६-१९२१ के हिन्दूमें भी छपा था।