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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


कोई लाभ नहीं है। हमें पहले विदेशी सरकारसे अपना बचाव स्वयं करनेके योग्य बनना चाहिए।
श्री एच० पी० मोदीने कहा कि हम लोग बहुत सालोंसे बाबूगीरी करते आये हैं और हमें फौजी काम करने और वैदेशिक सम्बन्धोंका संचालन करनेका अभ्यास नहीं है। हम इन कामोंको अंग्रेजोंके नियन्त्रणमें चलाते रहे हैं; इसलिए हम भारतीय इनको स्वतन्त्र रूपसे संचालित करनेमें अनभ्यस्त हैं।

गांधीजीने कहा, मेरा खयाल यह है कि अंग्रेज फिल्हाल भारत छोड़ जानेके लिए तैयार नहीं हैं; वे यहाँ रहेंगे, किन्तु में चाहता हूँ कि वे ऐसा अपनी शर्तोंपर नहीं, भारतीयों की शर्तोंपर करें। इसी समय भारतको छोड़कर चले जाने में अंग्रेजोंको शर्म लगेगी। दूसरी बात यह है कि मैं नहीं मानता कि यदि हमें कल ही स्वराज्य मिल जाये तो हमें दूसरी सभी विदेशी सरकारोंसे एक बार लड़ना होगा। किन्तु यदि हमें किसी दूसरे देशकी सरकारसे लड़ना भी पड़े तो हम उससे लड़ेंगे और जबतक हमारी जीत नहीं होगी तबतक लड़ते ही रहेंगे। मैं आपकी समझमें यह पैठा देना चाहता हूँ कि भारतीय अपने उद्देश्योंकी पूर्ति केवल अपनी शक्तिसे ही कर सकते हैं, दूसरोंकी चतुराई भरी चालोंसे या वक्रनीतिसे नहीं कर सकते। हम अपने अधिकारोंको तभी कायम रख सकते हैं जब हममें उनकी रक्षा करनेकी योग्यता होगी; न कि संसद या विधान परिषदोंकी मदद से।

श्री दुमसियाने कहा कि सामान्यतया बड़ा राष्ट्र छोटे राष्ट्रको धर दबाया करता है। संसारमें युद्ध या संग्रामके बिना कोई भी बड़े महत्त्वका काम सम्पन्न नहीं हुआ है। राष्ट्रमें सही भावना उत्पन्न करनेमें वर्षों लग जाया करते हैं। और राष्ट्रोंके जीवनमें वर्ष क्षणोंके समान हुआ करते हैं। इसलिए हमसे कहा गया कि ऐसे मत चलो कि रपट जाओ। डायरशाही और ओ'डायरशाही दोनोंसे पारसियोंको उतनी ही घृणा है जितनी कि अन्य किसीको। पारसी समाज सदासे ही शासकोंके प्रति राजभक्त रहा है, फिर वे चाहे हिन्दू हो, चाहे अंग्रेज। हम अंग्रेजोंसे यह कहनेके लिए तैयार नहीं हैं कि वे इस देशसे अपना बँधना-बोरिया लेकर चले जायें। हम बादशाह जॉर्जके साम्राज्यसे निकलना भी नहीं चाहते। हम ऐसे सभी आन्दोलनोंका पूरा समर्थन करेंगे जिनमें ये दोनों बातें मौजूद होंगी। यदि गांधीजी वैधानिक तरीकोंसे आगे बढ़ना चाहें, और दूसरे तरीके काममें न लायें तो हम पूरी तरह उनके साथ हैं। हम अपने बादशाह और अपने देशकी खातिर त्याग करने और हर तरहकी सेवा करने को तैयार हैं।

अन्य प्रश्नोंका उत्तर देते हुए महात्मा गांधीने कहा, मेरा आन्दोलन बोल्शेविक- वादके विरुद्ध एक बड़ा मोर्चा है। भारतीय यह नहीं चाहते कि इस देशमें अराजकता और आतंक फैल जाये। लोगोंके मस्तिष्क असहयोगके फलस्वरूप बहुत अधिक शुद्ध हो गये हैं। उदाहरणार्थ सिन्ध, हैदराबाद और खेड़ामें लोग नैतिक दृष्टि से