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दो धरना देनेवालों पर गुण्डोंने हमला किया और उनके सिर फोड़ दिये। ये दोनों वीर अपने सिरोंपर पट्टियाँ बाँधे रोज अपने मोर्चेपर डटे रहते हैं। बम्बई में एक भीड़ के सामने एक स्वयंसेवकके गालपर चांटा मारा गया लेकिन वह मजबूती से अपनी जगह डटा रहा और उसने बदला लेनेकी कोशिश नहीं की। शराब वगैरा बेचने वालोंको जैसे-जैसे धरनोंके असरका अहसास होता जायेगा वैसे-वैसे ऐसी घटनाएँ बढ़ती जायेंगी। इस सुधार कार्यको बन्द कर देना सम्भव नहीं है, भले ही अपना कर्त्तव्य पूरा करनेमें धरना देनेवालोंको अपनी जान ही क्यों न गँवानी पड़े। जबतक धरना देनेका काम करनेके लिए पर्याप्त स्त्री-पुरुष मिलते रहेंगे, और जबतक वे बदला लेनेकी कोशिश किये बिना अपनी जानपर खेलनेको राजी होंगे तबतक यह काम चलता रहेगा। इसी खतरेकी आशंकासे मैंने नरम दलवाले लोगोंसे देश-प्रेम के नामपर एक ही बारमें शराबकी दुकानें समाप्त करानेकी अपील की थी ताकि युवक और युवतियोंके चोट खाने या जानसे हाथ धोनेकी नौबत न आये। इसलिए पत्र द्वारा अपनी बात ठीक ढंगसे स्पष्ट न कर सकनेका मुझे बड़ा दुःख है। मैं जानता हूँ कि भविष्य में किसी-न-किसी दिन नशाबन्दी होकर रहेगी। लेकिन जिसका घर जल रहा हो उसे यह जानकर क्या राहत मिल सकती है कि आग बुझानेके यन्त्र बनाये जा रहे हैं।

ब्रिटिश सरकार बनाम अन्य सरकारें

‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में किसी ‘प्रेक्षक’ ने इस आन्दोलनके बारेमें मुझसे कुछ प्रश्न पूछे हैं। मुझे खेद है कि मैं इससे पहले उत्तर नहीं दे सका। एक मित्र यदि इनकी कतरन मुझे न भेजते तो शायद वे मेरी नजरसे गुजरते ही नहीं। ‘प्रेक्षक’ ने पूछा है कि ‘क्या ब्रिटिश शासन मुगल और मराठा शासनसे बेहतर नहीं है।’ मुझे यह कहनेकी जुर्रत करनी ही पड़ेगी कि मुगल और मराठा शासन ब्रिटिश शासनसे बेहतर थे, क्योंकि उस समय साराका सारा राष्ट्र उतना निर्बल अथवा दीन-हीन नहीं था जितना आज है। मुगल अथवा मराठा साम्राज्यमें हम परिया[१] नहीं थे; बहिष्कृत नहीं थे। ब्रिटिश साम्राज्यमें हम परिया हैं, बहिष्कृत हैं।

पारसी क्या करें

‘प्रेक्षक’ आगे पूछता है:

कि क्या पारसियोंसे इस बातकी आशा की जाती है कि वे उस सूरतमें भी अपने बच्चोंको सरकारी अथवा सहायता प्राप्त शालाओंसे निकल आनेको कहें जब कि पारसियोंकी विशिष्ट आवश्यकताओंको ध्यान में रखकर राष्ट्रीय शालाओंकी कोई व्यवस्था नहीं है। क्या पारसी वकीलोंको अदालतोंका बहिष्कार करके अपने परिवारोंको भूखों मरने देना चाहिए? क्या पारसियोंको अपने अच्छी कमाईवाले धंधोंको छोड़कर सूत कातने और सिर्फ तीन आने रोज कमाने में ही लग जाना चाहिए? प्रतिदिन तीन आने कमाकर तो वे कोरे सोडा वाटरकी एक बोतल
  1. दक्षिण भारतकी एक दलित जाति।