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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


अथवा कर्मचारीके रूपमें हिन्दुस्तानी अंग्रेजोंकी तुलना में घटिया होते हैं। वह कम ईमानदार और विवेकशील है, वह ज्यादा छुट्टियाँ लेता है और उसपर नजर रखना जरूरी होता है। हम यह देखते हैं कि मालिक अथवा कामपर रखने-वाले के रूपमें वह अंग्रेजोंसे घटिया है, उसमें न्यायशीलता और उदारता भी कम है। हम यह भी देखते हैं कि शारीरिक दृष्टिसे भी वह घटिया है, ज्यादातर भारतीय तो थके-माँदे बूढ़े आदमियों जैसे ही हैं। वह (यदि उच्च वर्गका हुआ तो) आम तौरपर व्यायाम और श्रमसे जी चुराता है, और अपनी ऐन जवानीमें भी वह अक्सर थका-हारा बूढ़ा-सा लगने लगता है। उसके बच्चे पटापट मरते हैं। यहाँ मद्रासमें जितने बच्चे पैदा होते हैं, उनके आधे पाँच बरसके होते-होते मर जाते हैं। नागरिकके रूपमें वह घटिया है; और यह बहुत ही कम देखा जाता है कि वह घूस देने-लेने का विरोध करे। वह क्योंकि जानवरोंको मार नहीं डालता, अपनी मानवीयताका डंका पीटता है, लेकिन गायोंको भी भूखों मरने देता है; घोड़ों तथा बैलोंके साथ जैसा बुरा बरताव भारतमें होता है वैसा किसी भी सभ्य देशमें नहीं किया जाता। विवाहित जीवनकी पवित्रता कायम रखनेके लिए उसने किशोरावस्थासे भी पहले विवाह कर देनेकी और फिर स्थायी वैधव्यकी परिपाटी बना दी है; इतना होनेपर यौन रोग भारतमें इंग्लैंडसे कहीं अधिक पाये जाते हैं और धर्मके नामपर छोटी-छोटी लड़कियोंको वेश्यावृत्ति सिखाई जाती है। (केवल एक ही उदाहरण लें तो) जिस प्रकार आज अंग्रेज स्त्री-पुरुष उन देशों में सेवा कार्यमें लगे हुए हैं जो युद्ध कालमें ब्रिटेनके दुश्मन थे उस प्रकार भारत अभारतीयोंकी सेवा करनेका क्या एक भी दृष्टान्त प्रस्तुत कर सकता है? यदि पूर्ण स्वराज्य प्राप्त कर चुकनेपर वह खतरेमें पड़ जाये तो क्या भारतकी आबादीके हर साढ़े चार करोड़में से पचास लाख लोग स्वेच्छासे उसकी फौजमें नाम लिखा लेंगे?
अपनी विशाल आबादी में से भारतने कितने थोड़े महान् व्यक्ति पैदा किये हैं? जीवित लोगोंमें से सिर्फ तीन ही ऐसे हैं ― टैगोर, बोस और गांधी। भारत-जैसे देशके लिए यह संख्या कितनी शानदार है! महारानी एलिजाबेथके जमाने में इंग्लैंडकी जनसंख्या आजके मैसूरकी आबादीसे ज्यादा नहीं थी।
ये सभी बातें आपको एकतरफा और गलत लग सकती हैं। शायद ऐसा है भी। लेकिन कोई भी अंग्रेज अंग्रेजों और भारतीयोंके बीच जो फर्क है, उसे इसी दृष्टिसे देखे बगैर कैसे रह सकता है?
यदि स्थिति ऐसी हो तो उसका उपचार भारतीयोंके हाथोंमें है, हमारे हाथोंमें नहीं। आपने राह दिखाना शुरू भी कर दिया है। मुझे आपका “असहयोग” शब्द पसन्द नहीं है, और न इससे आपका प्रयोजन स्पष्ट होता प्रतीत होता है। मैं उसके स्थानपर “स्वतन्त्र कार्रवाई” शब्दको ज्यादा पसन्द करूँगा।