पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/३२२

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२९२ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय सावरकर बन्धु 'कैपिटल' के 'डिचर' ने इन बहादुर भाइयोंपर कीचड़ उछाला है। उनमें से एक- पर उसने यह आरोप लगाया है कि उन्होंने कारावास-कालमें बेतारके तारका दुरुपयोग किया और शत्रुके साथ मिलकर षड्यन्त्र रचा। उसने सारी बातका ऐसे विस्तारके साथ वर्णन किया है मानो अधिकारियोंने उसे उस अंशको लिखने के लिए विशेषरूप से प्रेरित किया हो। यदि आरोप सही है तो सरकारको चाहिए कि वह तथ्योंको प्रकाशित करे। वह जिस रूपमें पेश किया गया है उससे जान पड़ता है मानो आरोप सच्चा है और अवश्य ही इससे जनताकी निगाहमें दोनों बन्धुओंकी प्रतिष्ठाको हानि हुई होगी। मैं समझता हूँ कि वे असहयोगी नहीं हैं। उनका दावा है कि वे बिलकुल निर्दोष हैं तथा उनके पास सम्बन्धित समाचारपत्रके विरुद्ध कारवाई करनेका स्पष्ट आधार भी है। बहरहाल जो भी हो, डा० सावरकरने मुझे सूचित किया है कि ऐसी सजाओंमें आम तौरसे जितने दिनोंकी माफी दी जाती है, अगर उन्हें भी गिना जाये तो उन दोनों भाइयोंमें से श्री गणेश सावरकर तो चौदह साल दो मासकी सजा भुगत चुके हैं। अतः कानूनन उन्हें रिहाईका अधिकार प्राप्त है। भारतीय दण्ड संहिताका खण्ड ५५ इस प्रकार है: ऐसे हर मामलेमें जिसमें आजीवन कालेपानीकी सजा दी जाती है, भारत सरकार अथवा उस स्थानकी सरकार जिसकी सीमा में उक्त दण्ड दिया गया हो, दोनोंमें से हर तरहके अभियुक्तकी सहमतिके बिना उसकी सजा घटाकर चौदह वर्ष कर सकती है। इस धाराके अन्तर्गत यह स्पष्ट है कि श्री गणेश दामोदर सावरकरको दो मास पूर्व ही रिहा हो जाना चाहिए था। चूंकि दोनों भाई अंडमानसे हटा दिये गये हैं, अतः जिस खण्डको मैने उद्धृत किया है वह उनके पक्षमें लागू किया जाना चाहिए, और उन्हें चौदह सालसे अधिक समयतक बन्दी नहीं रखा जाना चाहिए। सजामें से जितनी अवधि माफ की जा चुकी है उसे चौदह सालमें से घटना चाहिए। इस तरह- का उदाहरण, जो एक स्नेही भाईकी लगन तथा परिश्रमके कारण प्रकाशमें आया है, अपने ढंगका अकेला नहीं है। संसारको यह कभी विदित ही नहीं हो पायेगा कि इस प्रकार कानूनके नामपर कितने गैरकानूनी काम किये गये है। मेरा मन यह स्वीकार करनेको नहीं होता कि श्री सावरकरको जान-बूझकर कैदमें रखा जा रहा है और इसके पीछे दुष्टताका भाव है। किन्तु पीड़ित व्यक्तिको तो इससे कोई सान्त्वना नहीं मिल सकती। स्वतन्त्रताका प्रवेश-द्वार अभीतक और तो और प्रगतिशील-वर्गों में भी ऐसे लोग हैं जो भारतको स्वतन्त्रता- प्राप्तिके लिए जेल जानेकी उपयोगितापर सन्देह करते हैं। उनका खयाल है कि जेल चले जानेसे जनता वीर पुरुषोंकी सेवाओंसे वंचित हो जाती है। यह तो वैसा ही है जैसे यह कहना कि सबसे बहादुर सैनिकोंको कभी कोई जोखिम उठानी ही नहीं चाहिए। Gandhi Heritage Heritage Portal