पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/३४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

टिप्पणियाँ लेकिन भाई गोदरेजने तो बिलकुल हद ही कर दी है। उन्होंने तो तीन लाख रुपयेका दान दिया है। इतना तो किसी एक व्यक्तिने अबतक नहीं दिया। यह सच है कि यह रकम इस समय हमारे पास नकदीके रूपमें नहीं है, लेकिन यह तो सोनेकी मोहरके समान है। उन्होंने यह रकम हमारी प्रवृत्तिके दो शुद्धतम अंगोंके लिए अर्थात् मद्य-निषेध और अन्त्यजोंकी उन्नतिके लिए दी है। उन्होंने यह रकम खास तौरसे अन्त्यजोंकी उन्नतिके लिए दी है। इस कार्यके लिए मैं खुद तो सिर्फ हिन्दुओंका पैसा ही लेना चाहता हूँ। यह सुधार हिन्दुओंको ही करना है। लेकिन इस भाईने अपने निर्मल हृदयसे जब इसे देनेका निश्चय किया तो मैं इसे कैसे अस्वीकार कर सकता था? इस रकमको मिलाकर, जहाँतक मैं जानता हूँ, पारसियोंकी ओरसे कमसे-कम चार लाख रुपये हो जाते हैं। उनकी ओरसे जो भेंट मिलनेवाली है वह अलग है। भाई गोदरेज और पारसियोंको हम जितना धन्यवाद दें उतना कम है। दक्षिण आफ्रिकासे भी मदद आ चुकी है। पाटीदार मण्डलने ८,२७५ रुपया, खत्री मण्डलने ९६० रुपया तार द्वारा भेजा है। मैं अभी और अधिककी उम्मीद रखता हूँ।' दक्षिण आफ्रिकाके पाटीदारोंकी दानशीलताका तो मुझे हमेशा अच्छा अनुभव होता रहा है। कुछ लोग यह मानते जान पड़ते हैं कि जूनके बाद उन्हें अनुमति लिये बिना पैसा इकट्ठा करना अथवा भेजना नहीं चाहिए। यह तो निरा वहम है । आजतक हमने बेजवाड़ामें तय की गई तीन वस्तुओंपर ही ध्यान दिया है। उसका अर्थ यह नहीं है कि जून के बाद नये सदस्य अथवा नये चरखे नहीं बनवाने चाहिए और पैसे इकट्ठे नहीं करने चाहिए। एक करोड़ रुपया इकट्ठा करने के बाद तिलक स्वराज्य-कोषको हम भले बन्द कर दें। लेकिन एक करोड़ पूरा होने तक तो पैसा इकट्ठा करनेके लिए हम बँधे हुए हैं। हमारी प्रतिज्ञाके दो अंग है। एक करोड़ रुपया इकट्ठा करना और वह भी ३० जूनतक। अगर हम तीस जूनतक न कर सके और उसके बाद भी मेहनत करके एक करोड़ रुपया इकट्ठा करें तो हम ऋणमुक्त तो हो ही जायेंगे। अवधि बीतनेपर लज्जित हों। लेकिन बीतनेपर भी न देकर अथवा कम देकर हम निर्लज्ज तो नहीं बन सकते। इसलिए मुझे उम्मीद है कि जिन्हें इस कोषमें अभी चन्दा देना है वे अवश्य देंगे। गुजरातको उसके लिए प्रयत्न करनेकी जरूरत नहीं होगी क्योंकि गुजरात अपना फर्ज अदा कर चुका होगा। यह तो हुआ तिलक स्वराज्य-कोषके सम्बन्धमें। लेकिन सदस्यों और चरखोंका क्या हो? [वचन तो] सिर्फ इतना ही कि तीस जूनतक हम गुजरातसे कमसे- कम तीन लाख सदस्य बनायें और एक लाख चरखे चलायें। लेकिन हमारा कर्तव्य तो यह है कि गुजरात इस वर्ष २१ वर्षके लगभग प्रत्येक स्त्री-पुरुषको सदस्य बनाये, गुजरातके प्रत्येक घरमें चरखेका प्रवेश हो और आबाल-वृद्धको चरखा चलानेके लिए प्रेरित किया जाये। यदि हम गुजरात प्रान्तकी नौ लाख आबादी मानें और प्रति पाँच १. यहाँ मूलमें एक पादटिप्पणी दी गई है जिसमें कहा गया है : “ यह लिखनेके बाद तार द्वारा सूचना मिली है कि स्टेनरकी इंडियन एसोसिएशनकी ओरसे लगभग १०० पौंड तथा नैरोबीसे १,२७४ रु० प्राप्त हुए है।" Gandhi Heritage Portal