पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/३६१

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१५२. वैष्णवोंसे आपमें से अनेक मेरे सगे हैं, अनेक जातिभाई हैं, और कितने ही बचपनके मित्र है, [जिनके ] बहुत-सारे पत्र मुझ मिलते रहते हैं। अन्त्यजों सम्बन्धी मेरे विचारों के लिए आपमें से कोई मुझे बधाई देता है, अनेक इसे मेरी भूल मानकर विनयपूर्वक मुझे समझाते हैं, कोई गुस्से में आकर मुझे गालियां देते हैं और कोई-कोई तो मुझे धमकी भी देते हैं। इस सबको मैं, उनके मनमें मेरे प्रति निहित प्रेमकी निशानी समझता हूँ। अन्त्यजों- के सम्बन्धमें मेरे जो विचार है वैसे ही विचार अन्य अनेक लोगोंके भी हैं और वे अन्त्यजोंको स्पर्श करने में कोई दोष नहीं देखते। लेकिन ज्यादातर लोगोंको मुझपर ही गुस्सा आता है और उसका कारण मैं यही समझता हूँ कि वे मुझे दूसरी तरहसे मर्यादा धर्मका पालन करनेवाला तथा एक अच्छा व्यक्ति मानते हैं। उनके अनुसार अन्त्यजों सम्बन्धी मेरे विचारोंमें जो भूल निहित है उसको वे सहन नहीं कर सकते। उनकी मान्यता है कि मेरे ये विचार स्वराज्य सम्बन्धी हमारी गतिको भी अवरुद्ध करते हैं। कोई-कोई तो यह भी मानते है कि मैने आपत्तिको अपने हाथों न्यौता दिया है और अपनी हठधर्मीसे स्वराज्यकी नावको तूफानमें डाल दिया है। दूसरी ओर, मेरी नम्र मान्यता यह है कि अन्त्यजोंके प्रति मेरे भाव मेरे वैष्णव- धर्मको दीप्त करते हैं, उनमें मेरी शुद्ध दया निहित है, उनसे मेरी मर्यादाकी शुद्धता सिद्ध होती है। कितने ही वैष्णव यह मानते हैं कि मैं वर्णाश्रम-धर्मका लोप कर रहा हूँ और मेरी मान्यता यह है कि मैं वर्णाश्रम-धर्मको मलिनतासे निकालकर उसके शुद्ध स्वरूपको प्रकट कर रहा हूँ। मैं अन्त्यजोंसे रोटी और बेटीके व्यवहारकी हिमायत नहीं कर रहा हूँ। मैं तो इतना ही कहता हूँ कि किसी भी मनुष्यको छूनेमें पाप होता है, ऐसा विचार करना ही पाप है। रजस्वलाका उदाहरण देकर अन्त्यजोंकी अस्पृश्यताके विचारका जो बचाव किया जाता है, उसे मेरी मति तो अज्ञान मानती है। रजस्वला बहनसे अगर हम छू जाते हैं तो उसे हम पाप नहीं मानते। उसे तो हम शारीरिक शौच नियमको भंग हुआ जान, नहा-धोकर स्वच्छ हो जाते हैं। जिस अन्त्यज भाईने मैला उठाया हो और जबतक वह न नहाये अथवा दूसरी तरहसे स्वच्छ न हो तबतक स्पर्श न करना अथवा स्पर्श हो जानेपर नहा लेनेकी बात तो मैं समझ सकता हूँ लेकिन अन्त्यज कुलमें जन्मे लोगोंका सर्वथा त्याग करनेमें धर्म होनेकी बातको मेरी आत्मा कतई स्वीकार नहीं कर सकती। वैष्णव धर्मका मूल दया है। अन्त्यजोंके प्रति हमारे व्यवहारमें दयाका लेशतक नहीं दिखता। हममें से अनेक व्यक्ति तो अन्त्यजोंको गालीके बिना बुलाते ही नहीं हैं। भूलचूकसे अगर वे हमारे डिब्बे में बैठ जाते हैं तो उनपर गालियोंकी बौछार होने Gandhi Heritage Portal