पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/३७१

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टिप्पणियाँ ३३९ इस तन्त्रकी जड़ता प्रदर्शित करने के लिए एक और कारण प्रस्तुत किया है। मैंने स्वयं इस तन्त्रका भाग होने के नाते अपील नहीं की है बल्कि एक बाहरके आदमीके नाते अपील की है। धरनेके बारेमें 'इंडियन सोशल रिफॉर्मर'ने अपनी प्रभावपूर्ण शैलीमें धरनेकी उपयोगिताको अस्वीकार किया है। यदि मैं उसके द्वारा प्रस्तुत तर्ककी जाँचमें न पड़कर इस सम्बन्ध- में सिर्फ अपना अनुभव और अपने विचार सामने रखू तो थोड़ेमें ही काम चल जायेगा। यह तो स्पष्ट ही है कि धरना देना थोड़े दिनोंका ही कार्यक्रम हो सकता है; किन्तु यह किसी दवामें कोई अतिरिक्त उत्तेजक तत्त्व मिला देने जैसा है। शराब पीना व्यसन ही नहीं, एक व्याधि है। मैं बीसियों ऐसे आदमियोंको जानता हूँ जो खुशी- खुशी शराब पीना छोड़ दें, यदि यह उनके लिए सम्भव हो। मैं ऐसे भी लोगोंको जानता हूँ जिन्होंने प्रार्थना की है कि शराब उनकी पहुँचसे बाहर रखी जाये ताकि उन्हें उसका लालच न हो और ऐसा कर दिये जानेपर भी मैंने उन्हें चोरीसे शराब पीते हुए देखा है। लेकिन इसलिए मैं यह नहीं समझता कि उन्हें उस प्रलोभनसे बचानेका प्रयत्न गलत था। व्याधिग्रस्त लोगोंको उनकी अपनी गलतियोंसे बचाना आवश्यक है। यदि मेरे किसी पुत्रको जुआ खेलनेको लत हो और यदि जुआरियोंकी कोई कम्पनी मेरे पुत्रको प्रलोभन देनेके लिए मेरे घरके पास ही आकर जम जाये तो मेरा कर्तव्य हो जाता है कि या तो उस कम्पनीको मिटाकर धर दूं या उसके अड्डेके सामने निगरानीके लिए आदमी बिठा दूं, ताकि मेरे पुत्रको लज्जा आये और वह वहाँ जाना छोड़ दे। यह सच है कि मेरे घरसे दूर जुआरियोंकी दूसरी कम्पनियाँ हैं, तो भी मैं समझता हूँ इस कम्पनीपर निगरानी रखनेका मेरा काम उचित समझा जायेगा। अपने लड़केका जुआ खेलना कठिन बना देना मेरे लिए आवश्यक है। यदि 'रिफॉर्मर' राज्य द्वारा मद्य-निषेधके सिद्धान्तको स्वीकार करता है, तो उसे तबतक धरना देनेके सिद्धान्तको भी मानना चाहिए जबतक राज्य जनमतकी परवाह न करनेवाला बर्बर तन्त्र बना हुआ है। मान लीजिये कि राज्य हर गलीमें देहका व्यापार करनेवाली स्त्रियों- के लिए आलीशान इमारतें खड़ी करवा देता है और उन्हें अपना व्यापार चलाने के लिए अनुमति-पत्र देता है, तो जनताको क्या करना चाहिए ? क्या उसका यह कर्त्तव्य नहीं होगा कि यदि वह इन इमारतोंको, जो भ्रष्टाचारके अड्डे हैं, नष्ट नहीं करती तो उनका बहिष्कार कर दे और लोगोंको सावधान कर दे कि वे इस भ्रष्टाचारसे, जो उनके ऊपर थोपा गया है, अलग रहें? मैं इस बातकी आवश्यकताको मानता हूँ कि धरना देनेके लिए केवल चरित्रवान स्त्री-पुरुष चुने जायें और यह सावधानी बरती जाये कि जो लोग जनमतकी परवाह न करके शराब पीनेपर तुले हों उनके प्रति हिंसाका प्रयोग न होने पाये। धरना देना तो एक ऐसा कर्तव्य है कि यदि शराबबन्दीमें राज्यकी सहायता नहीं मिलती तो प्रत्येक नागरिकको इसे निभाना चाहिए। आखिर पुलिसका गश्तीदल चोरोंके विरुद्ध धरना नहीं देता तो और क्या करता है ? जब चोर किसीके घरमें घुसनेका इरादा जाहिर करता है तो पुलिस बन्दूकका इस्तेमाल करती है। Gandhi Heritage Heritage Portal