पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/३७२

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३४० सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय धरना देनेवाला कमजोर इच्छा-शक्तिवाले अपने किसी भाईको शराब पीनेकी लतसे सावधान करते हुए लज्जा, यानी प्रेमका दबाव डालता है। 'रिफॉर्मर'ने धरनेके सिर ऐसे अनेक दावे मढ़े हैं जो कभी किये ही नहीं गये। धारवाड़में हिंसा यदि 'क्रॉनिकल 'में छपे कांग्रेस कमेटीके तारको सच मानें, तो इसमें कोई सन्देह नहीं कि पुलिसका कोई अफसर, जिसको गोली चलानेका हुक्म देनेका अधिकार नहीं था, घबड़ा गया और उसने निहत्थी भीड़पर गोली चलानेका हुक्म दे दिया। शराबकी दूकानोंको कुछ ऐसी हठके साथ खुला रखा जा रहा है मानो जनताको शराब मुहैया करना सरकारका एक कर्तव्य है। वास्तवमें यह जनमतकी खुली और अनीतिपूर्ण अवज्ञा है। जो लोग मरे है, मैं बेशक उनके कुटुम्बियोंको बधाई दूंगा और यदि भीड़ने थोड़ा- बहुत भी शक्ति-प्रदर्शन किया हो, तो मैं उसपर दुःख प्रकट करूंगा। साथ ही मैंने उन भारतीय मन्त्रियोंको, जिन्हें ये हस्तान्तरित विभाग सुपुर्द किये गये हैं, आदर- पूर्वक सावधान कर देना चाहता हूँ कि यदि वे साहसके साथ उस संकटका सामना नहीं करते जो देशके सामने है और तुरन्त शराबकी दूकानें बन्द करके उस धनको नहीं लौटाते जो गरीब ठेकेदारोंसे पेशगी लिया गया था, तो वे अपने महान् दलकी परम्पराके विरुद्ध आचरण करेंगे। इस जघन्य व्यापारसे दुराचारपूर्वक जो राजस्व प्राप्त होता है उसे खो देनेकी चिन्ता उन्हें नहीं होनी चाहिए। एक जाग्रत और क्रुद्ध जन- चेतनाके सामने यह धन्धा टिका नहीं रह सकता। एक भ्रष्ट साधनसे प्राप्त धनसे चलने- वाली शिक्षा वैसे काफी बुरी चीज है। अब निर्दोष व्यक्तियोंके खूनका दाग लग जानेके बाद वह दुर्गन्धित हो उठेगी। मैं मन्त्रियोंसे प्रार्थना करता हूँ कि समय रहते चेत जायें। यह न हो कि उनपर कभी राजस्वके लोभमें अंधे होकर समयको न पहचान पानेका दोष लगाया जाये। इस ओरसे कुछ सप्ताह तो क्या कुछ घंटे भी उदासीन रहना, उनके लिए हानिकारक होगा। शराबसे प्राप्त राजस्वको छोड़ देनेसे पहले, राजस्वके दूसरे साधनोंको ढूंढ़नेके लिए रुके रहना गलत होगा। यह तो वैसा ही होगा जैसे किसी प्लेगवाले घरको दूसरा घर मिलने तक न छोड़ना। ऐसी स्थितिमें अधिकतर तो वह घर तत्काल खाली करके दूसरा घर तलाश किया जाता है। एक बहादुर सिख सरदार शार्दूलसिंह मुझे हमेशा बड़े ही बहादुर असहयोगी लगे हैं। वे बहुत सुसंस्कृत और सम्मानशील व्यक्ति है। अहिंसात्मक असहयोगपर उनकी बौद्धिक आस्था है। वे एक कट्टर राष्ट्रवादी हैं। सिख धर्मके सिद्धान्त उनको प्राणों के समान प्यारे हैं, किन्तु राष्ट्रवादसे भी उन्हें उतना ही प्यार है। अहिंसा सभी बातोंमें उनका सर्वोपरि सिद्धान्त नहीं है। इसमें उनकी स्थिति अली बन्धुओं-जैसी ही है, और यह एक बड़ी बात है। वे अहिंसाके सिद्धान्तका उतनी ही ईमानदारीसे पालन करते हैं जितना कि अली बन्धु, और इतना कहना काफी कह देना है। किन्तु यह सरकार उनको केवल देश-निकाला देनेके योग्य व्यक्ति मानती है। उन्हें पाँच वर्षका देश-निकाला दिया गया है। वे आवश्यकतासे अधिक बहादुर, ईमानदार और इसलिए आवश्यकतासे अधिक Gandhi Heritage Heritage Portal