पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

गुजरातियोंकी सहायता मिले तो बंगालको अपने हिस्सेकी रकम इकट्ठी करनेमें कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए । अजमेर-मारवाड़को ६ लाखसे ऊपरका अपना हिस्सा इकट्ठा करनेमें कठिनाई होगी। उसे विभिन्न रियासतोंमें जाना पड़ेगा । उसकी हालत शायद सबसे ज्यादा नाजुक है। मुसलमानोंके लिए अजमेरके नाममें ही जादू है।अजमेर शरीफ जानेवाले हजारों मुसलमान तिलक स्वराज्य-कोषके लिए खासी रकम दे सकते हैं। प्रत्येक कार्यकर्ताको समझना चाहिए कि हमें एक क्षण भी नहीं खोना है । प्रत्येक प्रान्तके प्रमुख नेताओंसे मेरा अनुरोध है कि वे जमा की गई रकमोंका साप्ताहिक ब्यौरा प्रकाशनके लिए भेजें । चन्देकी उगाहीका काम व्यवस्थित ढंगसे घर-घर जाकर किया जाना चाहिए। गुजरातने पंजाबका अनुकरण किया है। उसकी रसीदें रंगीन आर्ट पेपरपर छपी हैं और एक कोनेमें दिवंगत देशभक्तका सुन्दर चित्र है। भारतका मानचित्र रसीदके शेष भागकी शोभा बढ़ाता है। उसकी पुश्तपर स्व-राज्यकी दस शर्तें दी गई हैं। प्राप्ति-स्वीकृति गुजराती, देवनागरी और उर्दू लिपियोंमें दी गई है । रसीदें एक रुपये, पाँच रुपये और दस रुपयोंकी हैं। पंजाबने पिछली १२ तारीख तक १ लाख, ८५ हजार रुपये एकत्र भी कर लिये थे । अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीने देशके सामने जो कार्यक्रम रखा है, वह कर्मठ लोगोंके लिए सरल है । खाली सपने देखनेवालों या लम्बे-चौड़े भाषण झाड़नेवालों के लिए यह असाध्य कार्य है । जबतक स्वराज्यी कार्यकर्त्ता कामकाजी लोगों जैसी आदतें नहीं बनायेंगे तबतक भारत स्वराज्यकी स्थापना नहीं कर सकता।

जख्मी आँख

इन स्तम्भोंमें अहमदाबाद के मद्य-निषेध कार्य तथा उसके कार्यकर्ताओंके अपार आत्मसंयमकी ओर ध्यान आकर्षित किया जा चुका है । किसी अज्ञात व्यक्ति द्वारा फेंके पत्थरसे डा० कानुगाकी आँखमें इतनी गहरी चोट आ गई थी कि उनको आँखसे हाथ भी धोना पड़ सकता था । अन्ततः उन्हें कुछ दिन खटिया पकड़नी पड़ी। चोट खाकर भी, वे तबतक अपनी जगह डटे रहे जबतक कि उनकी जगह लेने कोई दूसरा नहीं आ गया। धरना देनेवाले अन्य लोग अपनी जगहपर जमे रहे। कोई भग-दड़ नहीं मची। कोई शिकायत दायर नहीं की गई, यह तो ठीक ही है। इसका असर बिजलीका-सा हुआ । पियक्कड़ोंके हाथोंके तोते उड़ गये । धरना देनेवालोंको अविचलित देखकर पथराव भी बेमतलब लगने लगा । और मुझे मालूम हुआ है कि उस घटनाके बाद फिर किसी तरहका पथराव हुआ ही नहीं । शराबकी दुकानोंपर जानेवालोंपर भी इतना ही जबरदस्त प्रभाव पड़ा है। मैं इसे असहयोग तथा उसके तात्कालिक परिणामोंका एक सर्वोत्तम उदाहरण मानता हूँ । यदि डा० कानुगाने पुलिसमें शिकायत की होती,और यदि उनके साथियोंने हमलेका जवाब दिया होता तो मामला गड़बड़ीमें पड़ जाता।अनेक प्रकारके अन्य महत्त्वहीन प्रश्न उठने लगते और हमेशाकी तरह दोनों

१. चन्दा एकत्र करनेके अतिरिक्त बेजवाड़ा कार्यक्रममें ये बातें भी शामिल थीं: कांग्रेसके एक करोड़ सदस्य बनाना और बीस लाख चरखे चालू करवाना। इस कार्यक्रमको ३० जून, १९२१ तक पूरा करना था ।