पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं तो असहयोगको स्थगित हुआ नहीं मानता और वह तबतक स्थगित होगा भी नहीं जबतक कि सरकार भारत, मुसलमानों और पंजाबियोंके प्रति अपने अपराधोंका निराकरण नहीं कर लेती और जबतक यह व्यवस्था इस प्रकार नहीं बदल दी जाती कि वह राष्ट्रकी इच्छाके प्रति उत्तरदायी हो जाये । निश्चय ही पदवियों, कानूनी अदालतों, स्कूलों और परिषदोंके साथ जुड़ी हुई प्रतिष्ठाके भ्रमको दूर करना आवश्यक था। मैं तो समझता हूँ कि सब मिलाकर 'नेशनलिस्टों' (राष्ट्रवादियों) ने इस सिल-सिलेमें अत्यन्त ही उत्तम आचरण किया है। उनमें अब कोई पदवीधारी व्यक्ति नहीं रह गया है, किसी भी ऐसे राष्ट्रवादी वकीलकी असहयोगियोंमें कोई प्रतिष्ठा नहीं रह गई है जिसने अपनी वकालत स्थगित नहीं कर दी है। राष्ट्रीय शालाओं और महाविद्यालयोंने ऐसे लड़के और लड़कियोंको तैयार किया है जो आज अपनी योग्यता- का अच्छा परिचय दे रहे हैं और मैं कह सकता हूँ कि परीक्षाका समय आनेपर वे अपने त्यागसे लोगोंको चकित कर देंगे। यह तो कोई भी देख सकता है कि परिषदोंसे दूर रहनेवाले लोग आज जो सेवा कर रहे हैं वह परिषद्में जाकर नहीं कर सकते थे। अपनी पदवियाँ त्यागनेवाले चन्द व्यक्तियोंने दूसरोंको मार्ग दिखाया है। ये सब चीजें समाजको बदल रही हैं। अब इन विशेष वर्गोंमें मौखिक प्रचारकी आवश्यकता नहीं है। जिन्होंने पदवियों, स्कूलों, अदालतों अथवा परिषदोंका परित्याग किया है, उनके आचरण और उनके चरित्रसे भाषणोंकी अपेक्षा कहीं अधिक सफल और कारगर प्रचार हुआ है। राष्ट्रीय स्कूलोंकी संख्या बढ़ रही है। लड़के अभीतक स्कूलों और कालेजोंको छोड़ रहे हैं। सरकारी आंकड़े बिलकुल गलत हैं। मुझे याद है, मैंने परिषद् के एक सदस्यको यह कहते सुना है कि कमसे-कम ३,००० छात्रोंने शिक्षण-संस्थाएँ छोड़ दी हैं। इसमें उन हजारोंकी गणना नहीं की गई है जो राष्ट्रीय स्कूलोंमें पढ़ रहे हैं । वकालत स्थगित करनेवालोंकी संख्या बराबर बढ़ रही है- अन्य स्तम्भमें धारवाड़ और गुंटूरके वकालत स्थगित करनेवालोंकी संख्या देखिए । पदवियोंका परित्याग भी अभीतक चल रहा है। और जब भीरु अथवा सतर्क व्यक्ति समझ लेंगे कि यह आन्दोलन एक गम्भीर और धार्मिक प्रयत्न है तथा लोगोंपर इसका प्रभाव स्थायी है तो वे भी अपनी पदवियाँ त्याग देंगे।

यदि भारतमें दक्षिण आफ्रिकाके आन्दोलनके इतिहासकी पुनरावृत्ति हो तो मुझे आश्चर्य नहीं होगा। मुझे आश्चर्य तो तब होगा जब ऐसा न हो । दक्षिण आफ्रिकामें आन्दोलन सर्वसम्मत प्रस्तावसे' प्रारम्भ हुआ था । जब उसके प्रथम चरणके प्रारम्भमें अधिकांश लोग ढीले पड़ने लगे थे, केवल १५० [ व्यक्ति ] जेल जानेके लिए आगे आये, फिर एक समझौता हुआ और जब वह फिर भंग हुआ तो आन्दोलनकी पुनरा- वृत्ति की गई, हम कुछ लोगोंको छोड़कर अन्य किसीको विश्वासतक नहीं होता था कि जनता ठीक समयपर आगे आ जायेगी। सत्याग्रह के अन्तिम चरणके प्रारम्भमें केवल सोलह स्त्री-पुरुष जेल जानेके लिए सामने आये थे । इसके बाद तो जैसे तूफान ही आ गया। सारी जनता मानो एक ज्वारके समान उठी । बिना किसी संगठनके, बिना

१. प्रस्तावके लिए देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ४३४ ।