पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/५१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४८२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कर्त्ता हैं। वे इन कुछ महीनोंमें कड़ा उद्यम करके अपनी तेजस्विता दिखा सकते हैं। वे स्वयं नेता बनकर स्वदेशीकी व्यवस्था करके ही अपने बन्दी नेताओंको सच्चा मान दे सकते हैं। उन्हें विदेशी कपड़ेका त्याग करना चाहिए। हमारे देशमें केवल इतना ही कपड़ा है कि हम अपने नंगेपनको ढक सकें। आन्ध्रमें इस समय इतनी दस्तकारी है कि वह भारत-भरमें सबसे महीन हाथके कते सूतका उत्पादन कर सकता है। चाहे किसीको कुछ भी हो जाये, आन्ध्रके सब नर-नारी अगले दो महीने इसी महान् कार्यमें व्यस्त रहें। हमारे नेताओंकी गिरफ्तारीसे हमारे कामकी प्रगतिमें अवरोध न आना चाहिए; बल्कि उलटे उसकी गति बढ़नी चाहिए।

भारतीय सैनिक और शासकवर्ग

शासकवर्गसे तात्पर्य केवल अंग्रेजोंसे नहीं है, बल्कि उनके द्वारा प्रशिक्षित किये गये हजारों भारतीयोंसे भी है। यह एक दूषित प्रणाली है; इसके अन्तर्गत जो भी कर्मचारी आते हैं वे सभी दूषित हो जाते हैं। और अब संयोगसे ऐसी स्थिति आ गई है कि भारतीय सैनिकों और शासकोंका उपयोग इस प्रणालीकी उत्तरोत्तर वृद्धिके लिए किया जा रहा है। गुन्टूरकी गिरफ्तारियोंके लिए कौन जिम्मेदार है? हिन्दुस्तानी। मटियारीमें गोली चलानेकी आज्ञा किसने दी? एक हिन्दुस्तानीने। असमके निरीह श्रमिकोंपर किसने प्रहार किया? हिन्दुस्तानियोंने। मौलाना शेरवानीके मुकदमेका झूठा दिखावा किसने किया? हिन्दुस्तानीने। प्रहार करनेवाले गोरखोंमें इतना साहस नहीं था कि निर्दोष स्त्री-पुरुषोंपर प्रहार करनेकी आज्ञाकी अवज्ञा करते। विभिन्न स्थानोंपर भारतीय पदाधिकारियों और न्यायाधीशोंमें इतनी दिलेरी नहीं है कि वे निर्दोष लोगोंपर गोली चलाने या उन्हें दण्ड देनेसे इनकार करें। हम स्वेच्छासे अत्याचारीके हाथका खिलौना बन जाते हैं यह हमारा पूरा-पूरा नैतिक पतन है। यदि हम यह देखें कि भावी जलियाँवाला-काण्डकी व्यवस्था भारतीय कर रहे हैं और वह उन्हींके मार्गदर्शनमें कार्यान्वित की जा रही है तो इससे मुझे कोई आश्चर्य न होगा। और हमारे वंशजोंके लिए यह स्वराज्यका प्रशिक्षण होगा। एक ऐसी शासन प्रणालीके अन्तर्गत, जो कि लम्बी-लम्बी अवधितक लाखों मनुष्योंको दासत्वके बन्धनमें जकड़े रखनेके निमित्त बनाई गई हो, सैनिक या न्यायाधीशका पेशा मानप्रद नहीं हो सकता। परन्तु हमें विदेशियोंके अत्याचारके समान ही अपने सगे भाई-बन्दोंका अत्याचार भी सहना पड़ेगा। हम भीरुतावश यह कल्पना न कर लें कि हम उन्हें डराकर उनसे उनकी नौकरी छुड़वा सकते हैं। वे उसे तभी छोड़ेंगे जब वे उससे तंग आ जायेंगे, हम उनका जीना दूभर करके उनसे उनका धन्धा नहीं छुड़वा सकते। हमें अंग्रेज अफसरके समान उन्हें भी चुनौती देनी होगी कि वे हमारे साथ बुरेसे बुरा व्यवहार कर लें। सच तो यह है कि वे केवल दयाके पात्र हैं। और गैर-जिम्मेदार होनेके कारण शायद अंग्रेज अफसरोंसे भी अधिक घातक चूकें कर सकते हैं। अंग्रेज जानते हैं कि वे शासक जातिके सदस्य हैं, इस कारण वे बहुधा अपने ऊपर कुछ संयम रखते हैं जब कि हिन्दुस्तानीको बहुत से बहुत अपना पद छिननेका खतरा होता है। इस कारण अपने देशमें दमन जो निश्चित रूप ले रहा है वह दमनके अबतक के रूपकी अपेक्षा बहुत अधिक खतरनाक है।