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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सम्मत वक्तव्य

वाइसरायने अपने साथ मेरी मुलाकातोंके सम्बन्धमें एक वक्तव्य[१] निकाला है जो मुझे भी मान्य है। उस वक्तव्यमें जनताके जानने योग्य सब आवश्यक ब्यौरा है। मैं उसका विवेचन करना नहीं चाहता। मेरे विचारमें उससे इस बातका स्पष्टी-करण हो जाता है कि जिस पश्चात्तापके वक्तव्यको मैंने 'क्षमा-प्रार्थना' कहा है उसका उद्भव केवल मुझसे है। उसकी बात मैंने यह जानकारी मिलनेसे पहले ही सोच ली थी कि मुझे जो भाषण दिखाये गये हैं उनके आधारपर अली भाइयोंपर मुकदमा चलाया जायेगा। इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि मैंने उसका सुझाव अली भाइयोंपर मुकदमा चलाये जानेकी आशंकासे नहीं दिया था; और उनको कैदसे बचानेके खयालसे तो हर्गिज नहीं दिया था। मेरा यह पक्का विश्वास है कि दोनों भाइयोंने यह वक्तव्य देकर अपने ध्येयकी बहुत बड़ी सेवा की है। उन्हें ऐसी सलाह देनेपर मुझे कोई पछतावा नहीं है। लॉर्ड रीडिंगने एक सम्मत वक्तव्य प्रकाशित करनेके सम्बन्धमें मेरे अनुरोधको मान लिया, मैं इसकी भी सराहना करना चाहता हूँ। वक्तव्यकी भाषा और स्वरूपके निर्धारणके विषयमें जो हमारा लम्बा पत्र-व्यवहार[२] चला उसमें मुझे लॉर्ड महोदयका ऐसा कोई दुःख दिखाई नहीं दिया कि मैं किसी प्रासंगिक विगतका उल्लेख न करूँ। मैंने अपनी ओरसे उन्हें सूचना दे दी थी कि किसी भी बातको छिपानेका मेरा विचार नहीं है। अतः जनताके सामने दोनों पक्षोंका पूर्ण वक्तव्य मौजूद है।

कराचीमें भीड़का दुर्व्यवहार

हालाँकि मैंने अभी स्वामी कृष्णानन्दके कारावास-दण्डके कारण उत्तेजित भीड़ द्वारा यूरोपीयोंपर पत्थर फेंकनेका विवरण अखबारोंमें नहीं पढ़ा है, तो भी मैंने अपने सिन्धी मित्रोंसे जो-कुछ सुना है उससे मुझे यही कहना पड़ता है कि पत्थर फेंकनेवालोंने अपने मान्य पवित्र ध्येयका अहित ही किया है। अहिंसाकी प्रतिज्ञाको तोड़कर उन्होंने स्वामीजीका भी अनादर किया है। स्वामीजी निःसन्देह एक लोकप्रिय और निर्भीक कार्यकर्त्ता हैं। उनके व्यवस्थित धरनेका शराब के व्यापारियोंकी बिक्रीपर निश्चित प्रभाव पड़ रहा था। मैंने यह भी सुना है कि उनपर किसीसे मारपीट करनेका झूठा अभियोग लगाया गया था। यह सब मानते हुए भी जनताका यह सीधा कर्त्तव्य था कि वह पूर्ण संयम रखती। पुलिसने स्वामीजीपर अन्यायपूर्वक मुकदमा चलाया और न्यायाधीशने उन्हें अन्यायपूर्वक दण्ड दिया। इस कारण कुछ निर्दोष यूरोपीयोंसे मारपीट करना अत्यन्त अविचारपूर्ण कार्य है। ऐसी घटनाएँ सविनय अवज्ञाको असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य बना देती हैं। जिस भोड़ने कराचीमें ऐसा दुर्व्यवहार किया उसे स्वामीजीका मान विदेशी कपड़ेके बहिष्कार, चरखा कातने और कपड़ा बुननेके द्वारा करना चाहिए।

  1. देखिए परिशिष्ट ३।
  2. यह उपलब्ध नहीं है।