पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/५१७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४८५
सविनय अवज्ञा

समयका प्रतीक

बम्बईमें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी सभामें एक सुखद घटना यह घटी कि एक तेलुगु भाषी सदस्यने हिन्दुस्तानी जाननेवाले सदस्योंसे हिन्दुस्तानकी भाषामें ही बोलनेका आग्रह किया और तमिल भाषी सभापतिने इस सुझावका अनुमोदन करते हुए उसी समय अगले वक्तासे हिन्दुस्तानीमें बोलनेका निवेदन किया। यह सुझाव बहुत लोगोंको पसन्द आया और कई वक्ताओंने उसपर अमल किया। द्रविड़ प्रान्तमें अब हिन्दुस्तानी सिखाने वाली बहुत-सी पाठशालाएँ हैं। फिर भी अभी तो बहुत कुछ करना बाकी है। मुझे आशा है कि जब कमेटीकी अगली बैठक होगी तबतक द्रविड़ सदस्य हिन्दुस्तानी सीखनेमें काफी प्रगति कर लेंगे। कांग्रेसके भावी प्रतिनिधि भी इसका ध्यान रखें।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ४-८-१९२१

२३६. सविनय अवज्ञा

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके सभी सदस्योंके मुँहपर 'सविनय अवज्ञा' की चर्चा थी। असलमें यह अवज्ञा कभी आजमाई तो गई नहीं, इस कारण सभी इसे भ्रमवश वर्तमान कालकी व्याधियोंकी रामबाण औषधि समझकर इसपर रीझे हुए जान पड़ते थे। मुझे विश्वास है कि यदि हम उचित वातावरण बना सकें तो यह रामबाण ओषधि बन सकती है। मनुष्यके लिए व्यक्तिगत रूपसे वैसा वातावरण सदा मौजूद रहता है। इसमें अपवाद यह एक ही स्थिति है जब उनकी सविनय अवज्ञाके फलस्वरूप रक्तपात आवश्यक हो जाये। मुझे इस अपवादका पता सत्याग्रहके दिनोंमें लगा। फिर भी अन्तरात्माकी ऐसी पुकार हो सकती है कि उसकी अवहेलना करनेका साहस हो, चाहे कुछ भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े। मुझे वह समय आता साफ दीख रहा है जब मेरे लिए सरकारके बनाये प्रत्येक कानूनकी अवज्ञा करना आवश्यक हो जायेगा, फिर चाहे उससे रक्तपात ही क्यों न हो। जब इस पुकारकी अवज्ञा भगवान्‌की अवज्ञा जँचे तब सविनय अवज्ञा अपरिहार्यं कर्त्तव्य बन जाती है।

जन-समूहकी सविनय अवज्ञाका आधार दूसरा ही होता है। उसको केवल शान्त वातावरण में आजमाया जा सकता है। वातावरणकी यह शान्त शक्ति ज्ञानपर आधारित होनी चाहिए, दुर्बलता और अज्ञानपर नहीं। व्यक्तिगत सविनय अवज्ञा दूसरोंके हितार्थ हो सकती है और बहुधा होती भी है। जन-समूहकी सविनय अवज्ञा स्वार्थके निमित्त हो सकती है और बहुधा होती भी है, क्योंकि व्यक्ति अपनी सविनय अवज्ञासे व्यक्तिगत लाभकी आशा रखते हैं। इस प्रकार दक्षिण आफ्रिकामें कैलेनबैक[१] और पोलकने[२]

  1. हरमान कैलेनबैक, एक जर्मन वास्तुकार और दक्षिण आफ्रिकामें गांधीजीके सहयोगी।
  2. एच॰ एस॰ एल॰ पोलक, दक्षिण आफ्रिकामें गांधीजीके एक निकटतम साथी। इंडियन ओपिनियनके सम्पादक। देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ४७।